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ग़ज़ल - बहुत की कोशिशें मैने गमों के पार जाने की ( गिरिराज भंडारी )

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बहुत की कोशिशें मैने गमों के पार जाने  की

मुझे फिर घेर लेतीं हैं वही खुशियाँ जमाने की

 

अगर सच है, तो वो सच है ,कभी कह भी दिया कोई

जरूरत क्या पड़ी थी आपको यूँ तिलमिलाने की

 

यक़ीं हो तो यक़ीं रखना नहीं तो बेयक़ीनी रख

तेरी आदत गलत लगती है मुझको, आजमाने की

 

अँधेरा इस क़दर हावी न हो पाता किसी आंगन

रही होती अगर चाहत दिये हर घर जलाने की

 

उदासी रोज़ अपना काम करती है बिला नागा

मगर आखों को आदत पड़ गई है मुस्कुराने की

 

अभी आवाज़ मद्धम है , ज़रा ऊँचे सुरों में रो

अभी आवाज़ आती है महज़ नक्कार ख़ाने की

 

मुझे गद्दारों से इस देश के इतना ही कहना है

जगह मुश्किल पड़ेगी खोजना कल सर छिपाने की

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मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 6, 2015 at 9:06pm

बहुत की कोशिशें मैने गमों के पार जाने  की

मुझे फिर घेर लेतीं हैं वही खुशियाँ जमाने की.............मतले ने भावविभोर कर दिया! लाजव़ाब!

मुझे गद्दारों से इस देश के इतना ही कहना है

जगह मुश्किल पड़ेगी खोजना कल सर छिपाने की           बेहतरीन!

बेहतरीन गज़ल आ० गिरिराज सर!शेर दर शेर दाद प्रेषित है!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 12:11pm

आदरणीय गिरिराज सर, बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

बहुत की कोशिशें मैने गमों के पार जाने  की

मुझे फिर घेर लेतीं हैं वही खुशियाँ जमाने की.... मोक्ष की राह का रोड़ा मोहमाया .... कमाल का मतला .... गहन दार्शनिक विचार  

 

अगर सच है, तो वो सच है ,कभी कह भी दिया कोई

जरूरत क्या पड़ी थी आपको यूँ तिलमिलाने की.......... बहुत बढ़िया शेर ... वाह वाह 

 

यक़ीं हो तो यक़ीं रखना नहीं तो बेयक़ीनी रख

तेरी आदत गलत लगती है मुझको, आजमाने की.....वाह वाह वाह क्या गज़ब की कहन है सर.... शानदार 

 

अँधेरा इस क़दर हावी न हो पाता किसी आंगन

रही होती अगर चाहत दिये हर घर जलाने की.............. बहुत बढ़िया शेर ..... सानी में कुछ और कलात्मकता आये तो मज़ा आ जाए अभी सपाट कथ्य बढ़िया होकर भी वैसा असर नहीं कर रहा है जितना अच्छा शेर का विचार है. 

 

उदासी रोज़ अपना काम करती है बिला नागा

मगर आखों को आदत पड़ गई है मुस्कुराने की...............वाह वाह बहुत ही बढ़िया.... लाजवाब शेर 

 

अभी आवाज़ मद्धम है , ज़रा ऊँचे सुरों में रो

अभी आवाज़ आती है महज़ नक्कार ख़ाने की.............. बढ़िया तंज ....बहुत बेहतरीन शेर हुआ है सर 

 

मुझे गद्दारों से इस देश के इतना ही कहना है

जगह मुश्किल पड़ेगी खोजना कल सर छिपाने की............ सही कहा.... बढ़िया शेर 

इस शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई सर 

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 11:17am

अँधेरा इस क़दर हावी न हो पाता किसी आंगन

रही होती अगर चाहत दिये हर घर जलाने की

बहुत सुन्दर गजल हुयी है, आदरणीय !

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