For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीतिका- *रंग में जिंदगी को*

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
मापनी-212__212__212__212,
समांत-(आते)___पदांत-(चलो)
पूर्णत: हिंदी व्याकरण पर आधारित रचना,
******************************
रंग में जिंदगी को डुबाते चलो।
शब्द मेरे लबों पर सजाते चलो।
------
जख्म रिसते रहें हो तुम्हारे अगर,
दर्द का गीत ही गुनगुनाते चलो।
-------
हो सरस फुल या कुम्हलाई कली,
जो मिले दिल उन्हीं से लगाते चलो।
-------
काँपते पैर हैं ढूँढते मंजिले,
राह में वो गिरें तो उठाते चलो।
-------
अजनबी कौन है दोस्तों अब यहाँ,
हाल अपना सभी को सुनाते चलो।
-------
सो रहे हैं कफ़न ओढ़कर लोग कुछ,
भोर बनके उन्हें भी जगाते चलो।
-------
भूत है वो अकेला नहीं आदमी,
हैं बहुत हमसफ़र जो बनाते चलो।
-------
हो ख़ुशी जो अधिक पास में आपके,
कुछ गरीबों दुखी पर लुटाते चलो।
--------
सूर्य बनके नहीं तो दिवा ही सही,
रास्तों को उजाले दिखाते चलो।
--------
कर जतन ये नहीं हो बगावत कभी,
बन गये रश्म रिश्ते निभाते चलो।
----------
मौलिक और अप्रकाशित रचना।

Views: 647

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 8, 2015 at 8:07pm
रचना पर आकर अपने सुन्दर विचार रखने के लिए सादर आभार आदरणीय श्री सुनील जी आप भी रचनाकार हैं आपकी भी अपनी दृष्टिकोण है जो मुझसे इतर ज्यादा खूब हो सकता है परन्तु रचनाकर्म रचनाकार के दिल पहले फिर पाठक के दिल को छुता है यहाँ जिंदगी को चलते हुए देखना ही मेरी नियत थी बस।
Comment by shree suneel on July 7, 2015 at 10:14pm
आदरणीय सुनील प्रसाद शाहाबादी जी, सुन्दर, भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई. वैसे. ..मुझे लगता है यदि समांत और पदांत का इससे इतर चयन किया जाता तो रचना मे और नयापन होता. सादर.
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 6, 2015 at 9:50pm
अंतस मन से आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी आपको।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 6, 2015 at 9:49pm
आदरणीय मोहन सेठी जी सप्रेम आभार गीतिका आपको अच्छी लगी।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 6, 2015 at 9:46pm
प्रथम आभार और नमन आद.मिथिलेश वामनकर जी आशय स्पष्ट है वो आदमी नहीं भूत है जो अकेला है क्योकि बनाओ तो हमसफ़र हजारो बन जाते है
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 6, 2015 at 8:25pm

सूर्य बनके नहीं तो दिवा ही सही,
रास्तों को उजाले दिखाते चलो।

बेहतरीन!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 6, 2015 at 7:21pm

आदरणीय सुनील प्रसाद जी हिंदी में ग़ज़ल की रचना के लिये बधाई ...उम्दा .....सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 3:36pm

आदरणीय सुनील जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

भूत वाला शेर समझ नहीं आया 

Comment by Shyam Narain Verma on July 6, 2015 at 10:15am

बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service