For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - बचपने में ही सभी बच्चे सयाने हो गये ( गिरिरज भंडारी )

तरही ग़ज़ल -

2122    2122   2122   212

तेज़ रफ़्तारी के सारे जब दिवाने हो गये

दूरियाँ सिमटीं नगर तक आस्ताने हो गये

 

अहदे नौ में टीव्ही ने तो यूँ मचाया है वबाल

बचपना में ही सभी बच्चे सयाने हो गये

 

जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे

यूँ लगा मुझको ग़मों से दोस्ताने हो गये

 

अब नई तहज़ीब के पेशे नज़र , सारे ज़ईफ

नौजवानों के लिये , कपड़े पुराने हो गये

 

इंतख़ाबी , इंतज़ामी थे सभी वो वाक़िये

आप ये मत बोलिये जाने अजाने हो गये

 

कुछ तो छींटे मारिये इस सम्त भी खुश रंग के

हम कभी तो कह सकें अब दिन सुहाने हो गये  

 

आपकी नज़रे करम का क्या असर है, क्या कहूँ

दर्द के लम्हें खुशी के कारखाने हो गये

 

आपने क्यों छू दिया मिसरों को मेरे प्यार से

सरकशी सब खो गई , प्यारे तराने हो गये

 

आप क्या आये कि सारी बज़्म रोशन हो गई  

'' चाँद क्या उभरा कि सब मंज़र सुहाने हो गये ''

 ******************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 764

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 18, 2015 at 6:01am

आदरणीय वीनस भाई , ग़ज़ल पर आने का तहे दिल से शुक्रिया , आपके सुझाये अनुसार सुधार  कर रहा हूँ ।

अहदे नौ में/  टीव्ही ने तो / यूँ मचाया/  है वबाल  --   टीव्ही को 21 ही लिया हूँ  ( व्ही को गिरा के )

मौत के लम्हों भी जीने के बहाने हो गये   को       दर्द के लम्हें खुशी के कारखाने हो गये   , कर रहा हूँ

आपका बहुत शुक्रिया , ऐसे ही आते रहियेगा  ॥

 

Comment by वीनस केसरी on April 18, 2015 at 3:22am

तेज़ रफ़्तारी के सारे जब दिवाने हो गये

दूरियाँ सिमटीं नगर तक आस्ताने हो गये ....अच्छा कहा

 

अहदे नौ में टीव्ही ने तो यूँ मचाया है बवाल

बचपने में ही सभी बच्चे सयाने हो गये.............. टीवही २१२ लेना कितना उचित है !!! बचपना या बचपने भाववाचक शब्द है एक से अधिक बच्चे के बचपन को इंगित करके लिए भी बचपन शब्द ही प्र्योग होगा... बवाल शब्द की वर्तनी गलत है सही शब्द वबाल है   

 

जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे

यूँ लगा हमको ग़मों से दोस्ताने हो गये................ मेरे और हमको .. के प्रयोग पर फिर से विचार करें

 

अब नई तहज़ीब के पेशे नज़र , सारे ज़ईफ

नौजवानों के लिये , कपड़े पुराने हो गये ..........बढ़िया कहा ..

 

इंतख़ाबी , इंतज़ामी थे सभी वो वाक़िये

आप ये न बोलिये जाने - अजाने हो गये.... को आपने लिखा तो है मगर लिया २ मात्रा में है .. शेर अच्छा है

 

कुछ तो छींटे मारिये इस सम्त भी खुश रंग के

हम कभी तो कह सकें अब दिन सुहाने हो गये  ... हासिले ग़ज़ल

 

आपकी नज़रे करम का क्या असर है, क्या कहूँ

मौत के लम्हों भी जीने के बहाने हो गये................. मौत के लम्हे भी जीने का बहाना हो गए काफ़िया निभाने के लिए वाक्य को नहीं बिगाड़ सकते ... इससे बेहतर है शेर हटा दिया जाए  

 

आपने क्यों छू दिया मिसरों को मेरे प्यार से

सरकशी सब खो गई , प्यारे तराने हो गये............. बढ़िया है

 

जिस तरह से आपकी शिर्कत से रोशन बज़्म है

'' चाँद क्या उभरा कि सब मंज़र सुहाने हो गये ''.......... मिसरा चस्पा नहीं हुआ ... पहला से भर्ती का है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 10:20pm

जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे

यूँ लगा हमको ग़मों से दोस्ताने हो गये      --  इस शे र में  एबे शुतुर्गुर्बा आ गया है , अतः

सुधि पाठकों से अनुरोध है कि  उपरोक्त  हमको के स्थान पर मुझको   पढ़्ने की कृपा करें ,

सही शे र -

जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे

यूँ लगा मुझको ग़मों से दोस्ताने हो गये   ---    सादर धन्यवाद ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 10:12pm

आदरणीय कृष्णा भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 10:10pm

आदरणीय सूबे सिंह भाई , ग़ज़ल की तारीफ और हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥

चूँकि सभी बच्चे ( बहुवचन ) मे मिसरा कहा गया है इस लिये बचपने कहना मेरे खयाल से गलत नहीं है , आदरणीय ॥ अगर गलत कहने का कोई कारण हो तो ज़रूर बताइयेगा , मुझे ग़लती सुधार कर खुशी होगी ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 17, 2015 at 10:09pm

अहदे नौ में टीव्ही ने तो यूँ मचाया है बवाल

बचपने में ही सभी बच्चे सयाने हो गये             वाह!!

जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे

यूँ लगा हमको ग़मों से दोस्ताने हो गये         वाह वाह!

सुन्दर गज़ल पर ढेरों दाद प्रेषित हैं..आदरणीय गिरिराज सर!

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 9:34pm

गिरिराज जी, बचपने..............का प्रयोग सही है । मैं थोडा समझ नहीं पा रहा हूँ  कि   बचपना, बचपना तो प्रयोग की दृष्टि से ठीक है लेकिन बचपने.............कृपया मार्गदर्शन करें

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 9:32pm

बधाई जी बहुत खूबसूरत गजल पर.....

अब नई तहज़ीब के पेशे नज़र , सारे ज़ईफ

नौजवानों के लिये , कपड़े पुराने हो गये

 

इंतख़ाबी , इंतज़ामी थे सभी वो वाक़िये

आप ये न बोलिये जाने - अजाने हो गये

बहुत अच्छे शेर  हैं।।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 8:14pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥

 एक तरही से मतलब  1 ( संख्या मे एक ) से है , दो तरही तो मै सुना नहीं हूँ , आदरणीय ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 8:12pm

आदरणीया प्रतिभा जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
11 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service