For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( ग़ज़ल ) जलाने को तुम्हारे हौसले तैयार बैठे हैं (गिरिराज भंडारी )

१२२२  १२२२ १२२२ १२२२

करेंगे होम ही, लेकर सभी आसार बैठे हैं

जिगर वाले जला के हाथ फिर तैयार बैठे हैं

ज़रा ठहरो छिपे घर में अभी मक्कार बैठे हैं

जलाने को तुम्हारे हौसले तैयार बैठे हैं

 

बहारों से कहो जाकर ग़लत तक़सीम है उनकी

कोई खुशहाल दिखता है , बहुत बेज़ार बैठे हैं

 

समझते हैं तेरे हर पैंतरे , गो कुछ नहीं कहते

तेरे जैसे अभी तो सैकड़ों हुशियार बैठे हैं

 

तुम्हें ये धूप की गर्मी नहीं लगती यूँ ही मद्धिम

तपिश के सामने हम हैं , बने दीवार बैठे हैं

 

कभी सैलाब ने धोया , कभी सूखा सताता है

हमें बरबाद करने को बहुत से यार बैठे हैं

 

ये अपने घर का मस्ला है, इसे छोड़ो, कहीं रख दो

अभी तो मुल्क के दुश्मन लगे तैयार बैठे हैं

 

बहुत मायूस होने की ज़रूरत है नहीं साक़ी

क़तारों में अभी सौ - सौ तेरे बीमार बैठे हैं

********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

Views: 956

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2014 at 10:56pm

आदरणीया शशि जी , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2014 at 10:56pm

आदरणीय  सौरभ भाई , आपकी सहमति से मेहनत सफल हो गयी , आपका हार्दिक आभार |

Comment by shashi purwar on August 24, 2014 at 6:49pm

वाह वाह बहुत  सुन्दर गजल है आ. गिरिराज जी , आपकी गजले सदैव मुझे बहुत पसंद आती है हार्दिक बधाई वाह अलग अंदाज

ज़रा ठहरो छिपे घर में अभी मक्कार बैठे हैं

जलाने को तुम्हारे हौसले तैयार बैठे हैं

 

बहारों से कहो जाकर ग़लत तक़सीम है उनकी

कोई खुशहाल दिखता है , बहुत बेज़ार बैठे हैं


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2014 at 10:52pm

नया मतला अच्छा हुआ है आदरणीय

जय हो..

:-)))

Comment by विजय मिश्र on August 22, 2014 at 5:38pm
क्षमा करेंगे आ० सौरभजी , बस आपसे यहीं सुनने को मन मचल रहा था |कभी-कभी हम जैसों को भी खुश्की लगती है |मेरे लिखने का अन्दाज हल्का ही था |पुनः क्षमा याचना , अन्यथा न लें |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 5:23pm

हुस्नेमतला की प्रतीक्षा रहेगी आदरणीय गिरिराजभाईजी. 

शेर में हआ परिवर्तन सटीक और तोषदायी हुआ है.  बधाई हो.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 5:22pm

आदरणीय विजय मिश्रजी,

// मीन- मेष मैं नहीं कर सकता ,मुझे पढ़ने में मजा आया और गजल का टोन बड़ा मस्ताना लगा //

आप किस विधि को मीन-मेष निकालना कहते हैं ? यह तो निहायत ही नकारात्मक शब्द है.

आदरणीय, आप इस मंच के अब पुराने सदस्य हैं. मंच की अवधारणा को आत्मसात करें जिसके अनुसार मंच सदस्यों को रचनाकर्म के अभ्यास के साथ-साथ पाठकधर्म के प्रति भी प्रेरित करता है.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2014 at 4:45pm

आदरणीय विजय मिश्र भाई , आपकी ग़ज़ल पर उपस्थिति आनंद कारी है , ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2014 at 4:43pm

आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की भूरी भूरी प्रशंशा के लिए आपका , दिली आभार |

काँमा , हटा लूंगा , मैं पढ़ते समय खुद वहाँ रुक जाता था इसलिए काँमा लगा दिया था |

मतला दूसरा कहने के प्रयास में हूँ , अभी वाला हुश्ने मतला बना लूंगा |

अतिम शेर को ऐसा कर रहा हूँ --

बहुत मायूस होने की ज़रूरत है नहीं साक़ी

क़तारों में अभी  सौ  सौ तेरे बीमार बैठे हैं   --- कैसा रहेगा ? ग़ज़ल पर आपकी इस उचित सलाह के लिए बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2014 at 4:35pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
7 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service