For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूरज भी आ गया था आशिकी के दांव में..

कल घूमने गया था समंदर के गांव में,
हिचकोलियां खाती रही कश्ती बहाव में।
 
निकले उधर से जब वो समंदर ठहर गया,
तूफान खुद सवार थे उनकी नाव में।
 
सूरत को क्या बयां करूं वो हुस्न नूर था,
नजरें थीं आसमान पर इतना गुरूर था,
 
पायल कि वो झनकार सुन रहा हूं आज तक,
जादूगरी थी ऐसी कोई उसके पांव में।
 
थे होंठ सुर्ख और बदन मरमरी सा था,
था रूप कोई अप्सरा का या परी का था,
 
जुल्फों में घटाएं थीं चेहरे पे धूप थी,
सूरज भी आ गया था आशिकी के दांव में।।
  
-  मौलिक व अप्रकाशित   - अतुल कुमार

Views: 765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by atul kushwah on October 28, 2014 at 11:16pm

आदरणीय सोमेश जी, सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार। लेकिन मैं अभी प्रशिक्षु हूं, प्रशंसा भला किसे नहीं अच्छी लगती, मगर जो स्नेह आपसे मिला, शायद उतना ज्यादा उत्कृष्ट रचनाकर्म अभी नहीं हो पाया है, इन तोतले प्रयासों को आशीष देते रहें। सादर— अतुल

Comment by somesh kumar on October 28, 2014 at 11:08pm

aap ki smst gzle hridya-sprshi hain ,nishndeh aap ek acche gzlkaar ki yogyta rkhte hain \saari gzlon ke lie bdhai


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 4:28pm

बहुत सुन्दर कोमल प्रस्तुति है आ० अतुल कुशवाहा जी 

इसे ग़ज़ल के शिल्प में ही ढालना था ना,,चार चाँद लग जाते.

इस प्रस्तुति पर मेरे बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये 

Comment by atul kushwah on June 20, 2014 at 5:29pm

आ.गिरिराज सर, आशीष देते रहें। सादर—अतुल


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 19, 2014 at 10:17pm

आदरणीय अतुल भाई , सुन्दर भाव पूर्ण द्विपदियों के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by atul kushwah on June 19, 2014 at 8:12pm

आ. महिमा श्री जी, प्रतिक्रिया के लिए आभार। सादर— अतुल

Comment by atul kushwah on June 19, 2014 at 8:10pm

आ.कूंटी जी, आपकी प्रतिक्रिया पढकर बहुत अच्छा लगा। सादर

Comment by atul kushwah on June 19, 2014 at 8:09pm

आ.मीना जी, स्नेह और आशीष के लिए आभार। सादर

Comment by atul kushwah on June 19, 2014 at 8:08pm

आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार। सादर— अतुल

Comment by atul kushwah on June 19, 2014 at 8:06pm

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन सर, प्रतिक्रिया के लिए आभार। आशीष देते रहिए। सादर—अतुल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
23 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Nov 18

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service