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गीत कोकिला गाती रहना/नवगीत/कल्पना रामानी

बने रहें ये दिन बसंत के,

गीत कोकिला गाती

रहना।

 

मंथर होती गति जीवन की,

नई उमंगों से भर जाती।

कुंद जड़ें भी होतीं स्पंदित,

वसुधा मंद-मंद मुसकाती।

 

देखो जोग न ले अमराई,

उससे प्रीत जताती

रहना।

 

बोल तुम्हारे सखी घोलते,

जग में अमृत-रस की धारा।

प्रेम-नगर बन जाती जगती,

समय ठहर जाता बंजारा।

 

झाँक सकें ना ज्यों अँधियारे,

तुम प्रकाश बन आती

रहना।

 

जब फागुन के रंग उतरकर,

होली जन-जन संग मनाएँ।

मिलकर सारे सुमन प्राणियों

के मन स्नेहिल भाव जगाएँ।

 

तब तुम अपनी कूक-कूक से

जय उद्घोष गुँजाती

रहना।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by S. C. Brahmachari on March 26, 2014 at 8:46pm
बने रहें ये दिन वसंत के .........पूरी रचना मनभावन लगी । हार्दिक बधाई ... बहन कल्पना जी !
Comment by Shyam Narain Verma on March 26, 2014 at 5:42pm
बहुत सुंदर नवगीत...बहुत-बहुत बधाई....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2014 at 5:38pm

आदरणीया कल्पना जी,  सुन्दर भाव पूर्ण गीत रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by coontee mukerji on March 26, 2014 at 4:27pm

बने रहें ये दिन बसंत के,

गीत कोकिला गाती

रहना।.......बहुत ही सुंदर एवं सकारात्मक पूर्ण भाव पूरे गीत में समाहित है.कल्पना जी आपको दिलसे साधुवाद.

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