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कैसे सराहूँ सौन्दर्य तुम्हारा ..

कहो प्रिय , कैसे सराहूँ

मैं सौंदर्य तुम्हारा.

मैं चाहता हूँ,

तुम्हारे मुख को कहूँ माहताब.
अधरों को कहूँ लाल गुलाब .
महकती केश राशि को संज्ञा दूँ
मेघ माल की .
लहराते आँचल को कहूँ
मधु मालती .
पर, अपवर्तन का अपना नियम है, 
मेरी दृष्टि गुजरती है,
तुम तक पहुचने से पहले
संवेदना के तल से,
और हो जाती है अपवर्तित
सड़क किनारे डस्टबिन में
खाना ढूंढते व्यक्ति पर,
प्लेटफार्म पर भीख मांगते
चिक्कट बालों वाली
छोटी लड़की पर..
देश के भविष्य से खेलते
झूठे वादे और बकवाद करते नेताओं पर.
मेरी संवेदना तुम्हें शायद
अर्थ हीन लगे, पर
यही है मेरा सत्य,
मेरा तल.
कहो! प्रिय, कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा..


नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Neeraj Neer on April 1, 2014 at 11:05pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा .. आपको कविता इतनी भी अच्छी लगी तो लेखन सार्थक हो गया . मैं तो इसे पोस्ट ही नहीं कर रहा था. चार छः महीने से यह रचना पड़ी थी , फिर एक दिन सोचा पोस्ट करता हूँ ... आपका हार्दिक धन्यवाद ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2014 at 5:49pm

आ० नीरज नीर जी 

रचना जिस ज़मीन पर हुई है मुझे बहुत पसंद आयी... इसी भाव भूमि पर मैंने भी एक रचना लिखी थी 'निगाहें' उसकी याद हो आयी.

मुझे ऐसा अवश्य ही लगा की कथ्य को सपोर्ट करने में रचना में संवेदनशीलता बीच की पंक्तियों में कुछ कम लगी... क्योंकि 'अपवर्तन का नियम' ये शब्द मुझे कुछ रूखापन लिए हुए लगे...

वैसे सुन्दर प्रयास हुआ है 

आपको हार्दिक बधाई 

Comment by Neeraj Neer on March 28, 2014 at 8:55am

हार्दिक आभार आपका आदरणीय सौरभ जी ... रचना पसंद आयी  हार्दिक धन्यवाद . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 1:13am

प्रस्तुति और बिम्बों के हिसाब से रोचक रचना हुई है. कथ्य में नयापन तो नहीं लेकिन उबाऊ भी नहीं है.

इस संवेदनशील रचना के लिए मंगलकामनाएँ.

हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by Neeraj Neer on March 24, 2014 at 4:49pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 10:52am

बहुत खूब भाई नीरज , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥  स्व. साहिर लुधियानवी जी का एक शेर याद आ गया --

अभी न छेड़ मुहब्बत के गीत ऐ मुतरिब

अभी हयात का महौल खुश गवार नही  -साहिर

Comment by Neeraj Neer on March 23, 2014 at 5:16pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी . 

Comment by annapurna bajpai on March 23, 2014 at 12:40am

बहुत खूब , सुंदर रचना बधाई आपको । 

Comment by Neeraj Neer on March 22, 2014 at 8:39pm

हार्दिक आभार आदरणीय अभिनव अरुण जी .. आपके इस कथन ने बहुत उत्साहित किया है .. बहुत धन्यवाद. 

Comment by Abhinav Arun on March 22, 2014 at 7:36am
क्या कहने इस अंदाज़ के नीरज जी ..गहरे और गंभीर प्रश्न खड़े करती कविता स्तुत्य है , बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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