For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नीड़ का निर्माण फिर फिर टल रहा है (गजल) - कल्पना रामानी

212221222122

बल भी उसके सामने निर्बल रहा है।

घोर आँधी में जो दीपक जल रहा है।

 

डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,

नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है।

 

हाथ फैलाकर खड़ा दानी कुआँ वो,

शेष बूँदें अब न जिसमें जल रहा है।

 

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।

 

क्यों तुला मानव उसी को नष्ट करने,

जो हरा भू का सदा आँचल रहा है।

 

मन को जिसने आज तक शीतल रखा था,

सब्र का घन धीरे-धीरे गल रहा है।

 

ख्वाब है जनतन्त्र का अब तक अधूरा,

आदि से जो इन दृगों में पल रहा है।

मौलिक व अप्रकाशित   

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by mohinichordia on February 5, 2014 at 7:50pm

ख्वाब है जनतन्त्र का अब तक अधूरा,

आदि से जो इन दृगों में पल रहा है। नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है। पूरी  रचना ही सोचने को मजबूर करती है | बहुत से सवालों के जवाब चाहियें लेकिन ...कौन दे जवाब  ?हम सभी को अपने-अपने गिरेबान में झाँकने की आज जरूरत है |एक पक्षी पुरषार्थ के बाल पर नीड़ का निर्माण कर ही लेगा हम अपने जनतंत्र को पाने का सच्चा पुरषार्थ कब करेंगे ? कल्पना जी ! बहुत अच्छी रचना . 

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 5, 2014 at 9:39am

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।.......................बहुत खूब..............अच्छा है..............

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2014 at 11:14pm

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।..........यह शेर बहुत पसंद आया

हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2014 at 10:17pm

आदरणीया कल्पना जी , बहुत बढिया ग़ज़ल कही है ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

बल भी उसके सामने निर्बल रहा है।

घोर आँधी में जो दीपक जल रहा है।

 

डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,

नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है। ----------- ये शे र खूब पसन्द आये , बधाई प्रेषित है ॥

Comment by coontee mukerji on February 4, 2014 at 9:58pm

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।

 

क्यों तुला मानव उसी को नष्ट करने,

जो हरा भू का सदा आँचल रहा है।....लाजवाब. कल्पना  जी हार्दिक बधाई.

Comment by Meena Pathak on February 4, 2014 at 6:56pm

बहुत सुन्दर .. बधाई आ० कल्पना दी | सादर 

Comment by Sarita Bhatia on February 4, 2014 at 4:52pm

वाह दी लाजवाब गजल 

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।

हार्दिक बधाई 

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 4, 2014 at 11:37am

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।...............................अच्छा लगा..........

Comment by Neeraj Nishchal on February 4, 2014 at 10:25am

बहुत अच्छी हकीकत सामने रखी आपने आदरणीया कल्पना जी ।
उस पर बच्चन जी के नज़रिये को भी आगे बढ़ाया है लेकिन

डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,

नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है।

इसमें थोड़ा सा अजीब लग रहा है
मतलब

डाल रक्षित ढूंढते , हारे पखेरू
या
डाल रक्षित ढूँढता ,हारा पखेरू

ऐसा कुछ होना चाहिए मेरे हिसाब से
पर हो सकता है आप सही हों ।

बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रेषित हैं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service