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सृजन-सृजन (अतुकांत) ...............डॉ० प्राची

शब्द तरंगहीन 
      गहनतम 
      सान्द्रतम 
      और 
      निर्बाध उन्मुक्तता में अवस्थित
      विलगता-विलयन के 
      सुलझे तारों पर स्पंदित
मन का अंतर्गुन्जन... / मदमस्त
जब चुन बैठे कोई स्वप्न 
और 
नियति 
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता 
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में 
खेलते है  ..सृजन-सृजन !

(मौलिक और अप्रकाशित) 

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 7:47pm

वाह वाह आदरणीया जय हो

ग़ज़ब के भाव

कम शब्दों में घोर निनाद उत्पन्न करती आपकी यह रचना 

बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें

Comment by बृजेश नीरज on November 28, 2013 at 7:44pm

बहुत सुन्दर रचना! आपकी रचना की गहनता बेमिसाल है! आपको हार्दिक बधाई!

एक प्रश्न बार-बार उठता है- क्या शब्दों की क्लिष्टता आवश्यक है?

सादर!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 28, 2013 at 4:16pm

गहन भावों के लिए गहरे शब्‍द आवश्‍यक हैं पर कभी-कभी मुझ जैसे अकिंचन पाठक का भी ध्‍यान रखा करें । शब्‍दों का अनुरणन कभी-कभी शोर भी पैदा करता है, थोड़ी सरलता आवश्‍यक प्रतीत होती है अन्‍यथा अर्थ भी आपको ही बताना होगा, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 2:14pm

अभिव्यक्ति में अन्तर्निहित भाव-दशा व अन्तःगार्भित तथ्य आपको आनंदित कर सके, लेखन की यही सफलता है.... उत्साहित करते अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० अरुण श्रीवास्तव जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 2:04pm

रचना पर आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद आ० श्याम नारायण वर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 1:54pm

आदरणीय सौरभ जी 

अभिव्यक्ति के कथ्य के प्रति आपकी मुखर स्वीकार्यता लेखन की तार्किकता को आश्वस्त करती हुई है.

इस रचना के प्रथम अंश की सम्प्रेशनीयता पर मैं भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं थी.. आपने लेखन व्यवस्था में जो सुधार सुझाया है वह सम्प्रेषण में स्पष्टता के लिहाज से पूर्णतः स्वीकार्य है.

अभिव्यक्ति की सुगढ़ता के लिए सार्थक सुझाव हेतु हृदय से धन्यवाद.

सादर.

Comment by Arun Sri on November 28, 2013 at 1:28pm

आपकी कविताओं का परोक्ष हमेशा ही बहुत गहन होता है ! जितनी बार पढ़ो , आनंद बढ़ता ही है ! बहुत सुन्दर !

Comment by Shyam Narain Verma on November 28, 2013 at 1:15pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2013 at 11:13am

क्रुपया इस लेखन व्यवस्था को देखिये --

***

शब्द तरंगहीन
      गहनतम
      सान्द्रतम
      और
      निर्बाध उन्मुक्तता में अवस्थित
      विलगता-विलयन के
      सुलझे तारों पर स्पंदित
मन का अंतर्गुन्जन... / मदमस्त
जब चुन बैठे ये कोई स्वप्न
और
नियति
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में
खेलते है  ..सृजन-सृजन !
***


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2013 at 10:26am

आदरणीया, जय हो..  बहुत खूब !! .. :-))))

कहा तो आपने बिल्कुल सही है. परन्तु अभिव्यक्ति स्वर के माध्यम से न हो कर लिखित शब्दों के माध्यम से हो तो ऐसे भावों को अंकित करने के क्रम में कुछ और व्यवस्था उचित होती न !  .. . :-)))

शुभ-शुभ

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