For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

झाड़

खामोश और बेकार

न पौधा न पेड़

न छाया न आराम न हवा

सिवाय जंगली छोटे कसैले- खटमिट्ठे फल

जो भूख नही मिटाते इंसान की

और पशु की भूख

वह कभी मिटती नहीं

झाड़

एक आस जरूर देता है

काँटे सी चुभती आस

किसी के पुकारने की

उलझा है दुपट्टा काँटे मे रात -दिन

उफ ये रात

सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा 

घूरता हुआ दिन

भभकता हुआ सूरज

धकेलता है दिन अकेला

कोई तो रास्ता हो

तर्क- कुतर्क के परे

सब खत्म होना है एक रोज

तो फिर चीखना क्यों

झाड़ होना ही ठीक है

मैंने मौन बो दिया है! 

            -गीतिका 'वेदिका'

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 955

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on December 2, 2013 at 6:17am

आ० अभिनव अरुण जी! रचना पर आपका संदेश पाना मुझे उत्साहित कर गया है| और आत्मविश्वास मे भी वृद्धि हुयी है|  आपका आशीष मिला, मै नत हूँ| शुभकामनाओं हेतु आपका आभार व्यक्त करती हूँ|  

सादर !!

Comment by Abhinav Arun on November 29, 2013 at 8:09pm

इस कविता की चर्चा सुनी थी ..आज पढ़ी अदभुत ..अप्रतिम ..चमत्कृत करते शब्द ..भाव बिम्ब ..प्रतिबिम्ब ..क्या कहने आ. गीतिका जी एक मानक रख दिया है आपने ...वाह वाह .. बहुत आशीर्वाद बहुत शुभकामनायें आपको !!

Comment by वेदिका on November 20, 2013 at 5:08pm

आ0 प्राची दी! आपने रचना को आशीर्वाद दिया, मै अभिभूत हूँ|   मन की उपज को मंच के छैनी हथौड़ी ने तराश कर सार्थक आकार दिया!

मंच के प्रति आभार और आस्था व्यक्त करती हूँ|  

सादर!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 20, 2013 at 4:45pm

प्रिय गीतिका 

इस बार आपकी कलम की गहराई देख सचमुच दंग हूँ..

बिम्ब , इंगित, भाव सब एक से बढ़ कर एक प्रभावी 

सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा 

घूरता हुआ दिन

भभकता हुआ सूरज

धकेलता है दिन अकेला

कोई तो रास्ता हो

तर्क- कुतर्क के परे

सब खत्म होना है एक रोज

तो फिर चीखना क्यों

झाड़ होना ही ठीक है

मैंने मौन बो दिया है! 

अंत की चार पंक्तियों नें तो जैसे एक दर्शन ही प्रस्तुत कर दिया 

बहुत बहुत बधाई गीतिका ..आपकी लेखनी निशदिन यूँ ही ऊर्जस्वी हो..हार्दिक शुभकामनाएं 

सस्नेह 

Comment by वेदिका on November 20, 2013 at 12:15am

आ0 राम शिरोमणि भाई! आपकी बधाई मेरे लिए विशेष महत्व रखती है|

आभार !! 

Comment by वेदिका on November 20, 2013 at 12:13am

आ0 शिज्जु जी! आपकी प्रतिक्रिया इतने सलीके से हास्य का बोध करा गयी, और मेरे लिए एक प्रोटोटाइप भी निर्मित कर गयी :-)  आपका आभार व्यक्त करती हूँ!

Comment by वेदिका on November 20, 2013 at 12:07am

आ0 महिमा जी! आपका स्नेह सदैव ही मिला है और मिलता रहे मेरी रचनाओं को! आपका आभार व्यक्त करती हूँ! 

Comment by वेदिका on November 20, 2013 at 12:04am

आदरणीय सौरभ जी ! किताब मे अतुकांत सम्पादन के दौरान, आपने जितना अच्छा समझाया, सीमेंटेड हो गया है!

 

बहुत बहुत आभार!!    


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 11:42pm

//रचना मे संयत भावदशा का आना, इसके पीछे केवल एक कारण है और वो हैं आप! //

ए भाई, आपने तो पोस्ट करने के पूर्व इस रचना को मुझसे साझा क्या, बताया तक नहीं था. फिर मैं इसके होने का कारण कैसे हो गया !!.. :-)))

ख़ैर, इस सुन्दर प्रयास पर पुनः बधाई और शुभकामनाएँ कि ऐसे ही प्रयासरत रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by वेदिका on November 19, 2013 at 11:38pm

आदरणीय सौरभ जी! रचना मे संयत भावदशा का आना, इसके पीछे केवल एक कारण है और वो हैं आप! मैंने बहुत डरते डरते यह रचना रची, और इसमे उतनी ही मेहनत की जितनी कि एक गज़ल मे करती हूँ| और जब भी फाइनल खाका तय करती तो आपके कहे हुये शब्द याद आ जाते कि "कुछ भी लिख दोगी तो कविता बन जाएगी?" हरसंभव उस 'कुछ भी' को पहचाना और मिटाने कि कोशिश की  :-) ,,,,! अब कुछ कुछ समझ आया है मुझे!! 

आपकी बधाई स्वीकारने मे हर्ष हो रहा है! 

आभार!!  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
7 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service