For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भोले मन की भोली पतियाँ

भोले मन की भोली  पतियाँ

लिख लिख बीतीं हाये रतियाँ

अनदेखे उस प्रेम पृष्ठ को

लगता है तुम नहीं पढ़ोगे

सच लगता है!

बिन सोयीं हैं जितनीं रातें

बिन बोलीं उतनी ही बातें

अगर सुनाऊँ तो लगता है

तुम मेरा परिहास करोगे

सच लगता है!

रहा विरह का समय सुलगता

पात हिया का रहा झुलसता

तन के तुम अति कोमल हो प्रिय

नहीं वेदना सह पाओगे

सच लगता है!

संशोधित

मौलिक व अप्रकाशित

९॰११॰२००० - पुरानी डायरी से

Views: 1524

Comments are closed for this blog post

Comment by वेदिका on December 10, 2013 at 2:04pm

आ० बृजेश जी! सर्वप्रथम आपकी बधाई स्वीकार करती हूँ|

जी नहीं ये रचना देश दुनिया का दुख दर्द बयान करने वाली नही है| आपके समस्त प्रश्नों का सम्मान करती हूँ| रचना मंच से वापस लेने के लिए निवेदन करती हूँ| 

सादर !!

Comment by वेदिका on December 10, 2013 at 1:57pm

आभार आ० सौरभ जी!

Comment by बृजेश नीरज on December 8, 2013 at 9:34am

सुन्दर रचना! इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

आपकी रचना ने कई प्रश्न उठाये हैं! कुछ आपसे साझा कर रहा हूँ! आप जैसी विदुषी का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण होगा, रचनाकर्म के प्रति एक नयियो दृष्टि देने में सहायक होगा-

आपके अंतिम बंद को उदहारण के रूप में लेता हूँ-

//रहा विरह का समय सुलगता............समय सुलगता है?

पात हिया का रहा झुलसता

तन के तुम अति कोमल हो प्रिय

नहीं वेदना सह पाओगे....................हिय के झुलसने की वेदना तन क्यों सहेगा?

सच लगता है!//.............. ?

'हाये रतियाँ'........इसका क्या मतलब? सिर्फ तुकांतता और मात्रा साधने के लिए शब्दों के साथ तोड़ मरोड़ उचित है क्या?

दूसरा प्रश्न- आपने एक कविता पर ये टिप्पणी की है-

//कहते है कि जहाँ भीड़ मे एक पत्थर उछाल फेंको, और जिसे लगे वही कवि| और इन कवियों ने तो कविताई को नुमाइश मे बिकने वाला हर माल २१ रूपय का समझ रखा है| अपने निजी जीवन से रोज की खुन्नस के लिए श्रोता खोजते हैं| बुखार हुआ तो कविता, उधार वापस नही मिला तो कविता, सरसता और उद्देश्यगत काव्य को ताक रख अतुकांत कविता के पत्र को अपनी दैनंदिनी बना रखा है इन महाकवि ने और बिना काम की रोचकता उत्पन्न करने की कोशिशें करते हैं|//

अतुकांत को लक्ष्य कर लिखी गयी आपकी इस टिप्पणी के परिप्रेक्ष्य में आपकी इस रचना पर आपको क्या कहना है? क्या ये देश-दुनिया का दुःख-दर्द बयां करने वाली रचना है?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2013 at 12:58am

वाह क्या रवानी है रचना में !

सच लगता है..  :-))))

बधाई हो..

Comment by वेदिका on December 4, 2013 at 5:19pm

आभार आ० वंदना दीदी!

Comment by vandana on December 4, 2013 at 6:50am

रहा विरह का समय सुलगता

पात हिया का रहा झुलसता

तन के तुम अति कोमल हो प्रिय

नहीं वेदना सह पाओगे

बहुत सुन्दर भाव और लय बद्ध रचना  आदरणीया गीतिका जी 

Comment by वेदिका on December 3, 2013 at 5:11pm

आ० शेखर जी! आपने रचना के संशोधित रूप पर पुनः समय दिया! आभार व्यक्त करती हूँ!

Comment by वेदिका on December 3, 2013 at 5:10pm

आ० सचिन देव जी! उत्साहवर्धन हेतु आभार!

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 3, 2013 at 4:32pm

अति सुन्दर, एक दम लयबद्ध और भावपूर्ण बन पड़ी है रचना। बहुत बधाई, नया संस्करण बहुत अच्छा लगा।

Comment by Sachin Dev on December 3, 2013 at 3:20pm

आदरणीय गीतिका जी... आपकी पुरानी डायरी से निकली इस बेहद खूबसूरत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
9 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
14 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
18 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service