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जब आसमान में काले बादल

नज़र आते हैं

जब रात स्याह और घनी हो जाती है

कोई पथ नहीं दिखता

डर बढ़ जाता है

स्वयं को खोने का

तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है

मैं तुम्हारे साथ हूँ

जब दर्द बढ़ जाता है

पीड़ा घनीभूत हो

आँसू बन ढुलकती है

गालों पर मोती सी

तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है

मैं तुम्हारे साथ हूँ

जब मेरे ही

मुझे प्रताडित करते हैं

मुझ में विश्वास नहीं कर

मुझे निराश करते हैं,

जब सपने टूटते हैं

कोई कंधा नहीं मिलता

सिर रखकर रोने को

दिलासा देने को,

जब मार्ग अनजाने होते हैं

बाधाएं सिर उठाती हैं

अपने पराये हो जाते हैं

तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है

मैं तुम्हारे साथ हूँ

मैं यहां हूँ

मृग के अंदर कस्तूरी की तरह छिपी

ऊर्जा से परिपूर्ण

नये अर्थ, नई संभावनाएँ लिए

बाहर की भटकन छोड़ो

मेरी ओर देखो,

मैं यहां हूँ

अतल गहराइयों में दबी

वह अंतस की शक्ति

मुझे बल देती है

मैं फिर चल पड़ती हूँ

पहले से अधिक दृढता से

आगे बढ़ती हूँ

लक्ष्य की ओर जो है ..

मानवता की महानता को पाने का

नये द्वार, नये नये पथ दिखते हैं,

कोई अलौकिक धवल किरण

प्रकाशित कर जाती है

उस पथ को

और मैं नये रूप मैं

जीवन को

देखने लगती हूँ |

मोहिनी चोरडिया

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना 

     

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Comment

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Comment by Akhand Gahmari on November 1, 2013 at 9:21pm

आदरणीये मैं हिन्‍दी साहित्‍य के प्रथम अध्‍याय केा भी अभी शुरू नहीं कर पाया हॅू और ना ही हमें इसकी समझ है मगर आप की कविता की

मेरे अन्‍दर से आवाज आती है'''''''''''''''''जीवन की यह सच्‍चाई है आदमी सही काम करे या गलत सुख में दुख में अर्न्‍तमन सब जगह रास्‍ता दिखाता है बस हम उसे समझ पाये ना समझ पाये हम उसकी आवाज सुने ना सुने यह सब अपने उपर है

Comment by Ravi Prabhakar on November 1, 2013 at 6:03pm

मन को मोह लिया आदरणीय मोहिनी जी आपकी उत्‍क़ष्‍ट रचना ने, आपकी और प्रस्‍तुतियों का इंतजार रहेगा

कृपया ध्यान दे...

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