For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“इन्सपैक्टर साहब, मैं तो कहती हूँ कि हो न हो मेरे गहने मेरी सास ने ही चुराए हैं..... बहुत तिरछी नज़र से देखती थी उनको...... अब सैर के बहाने चंपत हो गई होगी उन्हें लेकर।“ – बड़े गुस्से में रौशनी ने कहा

वहीं रौशनी का पति दीपक चुपचाप खड़ा था।

इससे पहले की इन्सपैक्टर साहब कुछ कहते रौशनी की सास घर वापस लौटती दिखी। अपने घर पर भीड़ देखकर वे कुछ परेशान हुईं और कारण जानकर वे फिर से साधारण हो गईं जैसे कि वे चोर के बारे में जानती हों। अंदर अपने कमरे में जाकर वो दो कड़े और एक चेन लेकर वापस आईं और रौशनी को देते हुए बोलीं – बहू यह लो अपना सामान। कल तुमने इन्हें उतारकर ड्राइंग रूम में ही छोड़ दिया था। सुबह सैर को जाते समय मेरी नज़र इन पर पड़ी तो उठाकर अपनी अलमारी में संभाल कर रख दिया। तुम तो सो रही थीं ना। फिर एक नज़र उन्होंने दीपक पर डाली और फिर से अपने कमरे में चली गई।

दीपक अभी भी मौनव्रत खड़ा था।

.

 सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1177

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on November 5, 2013 at 8:21am

आपकी सार्थक टिप्पणी के लिए कोटि कोटि धन्यवाद आपका आ0 सौरभ जी....

Comment by Sushil.Joshi on November 5, 2013 at 8:20am

अतिश: धन्यवाद आपका आ0 शुभ्रांशु जी...

Comment by Sushil.Joshi on November 5, 2013 at 8:20am

आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका आ0 डॉ. प्राची जी.....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2013 at 5:13am

पैसा बोलता है. बहू की वाणी में उसका ’लाया’ हुआ पैसा ही बोल रहा था जो बेटा दत्त-चित्त सुनता रहा. 

एक ऐसी कहानी जो बदलते नज़रिये की साक्षी है.

बधाई आदरणीय.

Comment by Shubhranshu Pandey on November 1, 2013 at 10:11am

आदरणीय सुशील जी, 

शंकाओं और धारणाओं को पिरो कर सुन्दर कथा बन पडी़ है. 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 30, 2013 at 12:44pm

दंग रह जाती हूँ देख कर कि परिवारों में ऐसा कुछ भी होता है...

आधुनिक पड़े लिखे परिवारों में अविश्वास और रिश्तों की सतहीयता का एक शर्मनाक किन्तु सत्य पक्ष प्रस्तुत करती संदेशपरक सार्थक लघुकथा पर हार्दिक बधाई आ० सुशील जोशी जी 

Comment by Sushil.Joshi on October 30, 2013 at 7:20am

आपकी अनमोल टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आ0 लक्ष्मण प्रसाद जी.....

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 28, 2013 at 12:24pm

नव वधु के ससुराल आने के बाद पति उसके आचरण, संस्कार को समझ, अपने घर के सुसंस्कार साझा करे,

साँस-बहु में सामंजस बिठाने का प्रयास करे तब तो सोने में सुहागा | परिपक्व सास ने स्थिति समभा घर की

लाज रखली,यही बड़ी बात है वरना लापरवाह बहु से तो ------------| कहानी में छुपे सुन्दर सन्देश के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री शुशील जी  

Comment by Sushil.Joshi on October 28, 2013 at 4:56am

कथा के मर्म तक पहुँच कर उस पर अपनी अनमोल एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद विशाल भाई....

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 1:35pm

वाह भाई.... आज के बदलते रिश्तों..... उनमें कम होते विश्वास पर आधारित एक बहुत ही रोचक एवं भावपूर्ण लघुकथा !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
18 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
21 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service