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धूप का टुकड़ा.....

दरख़्तों से छुपा-छुपी खेलता हुआ

वो तीखी धूप का एक टुकड़ा

मेरे कमरे तक आने को बेचैन

हवा ज्यों तेज़ हो जाती

वो ताक कर मुझे

वापस लौट जाता

इतना रौशन है वो आज कि

उसके ताकने भर से

अँधेरे से बंद कमरे की

आंखें उसकी चमक से

तुरन्त खुल जाती हैं

बहुत नींद में रहता है कमरा

आंखें मिचमिचाता है

कुछ देर तक यूँही देख

फिर आँखें बंद कर लेता है

हम्म ....मुझे लग रहा है

आज धूप का ये टुकड़ा

बारिश के बाद नहाया हुआ

मस्ती में है इसलिए

खेल रहा है शायद

खेलते रहो....तुम दोनों

मैं भी देखूं

कौन मारता है बाज़ी ....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)


....प्रियंका ''पियू ''

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Comment

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Comment by Priyanka singh on August 12, 2013 at 10:51pm

माथुर सर आपकी पसंदगी और सराहना का बहुत बहुत शुक्रिया .....

Comment by Priyanka singh on August 12, 2013 at 10:49pm

केवल सर बहुत बहुत आभार आपका .....

Comment by D P Mathur on August 12, 2013 at 10:00pm

आज धूप का ये टुकड़ा

बारिश के बाद नहाया हुआ

मस्ती में है इसलिए

खेल रहा है शायद

खेलते रहो....तुम दोनों

मैं भी देखूं

कौन मारता है बाज़ी ....

सुन्दर प्रस्तुति की बधाई !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 12, 2013 at 9:21pm

आ0 प्रियंका जी, इक सुन्दर प्रस्तुति। आपको ढेरों बधाईयां। सादर,

Comment by Priyanka singh on August 12, 2013 at 5:11pm

धन्यवाद राजेश सर .....

Comment by Priyanka singh on August 12, 2013 at 5:10pm

बहुत बहुत आभार बसंत सर आपका .....

Comment by Priyanka singh on August 12, 2013 at 5:09pm

अपने बिलकुल सही पहचान लिया सर .....पसंदगी का बहुत बहुत शुक्रिया सुलभ सर जी ......

Comment by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:23pm

बहुत बढि़या प्रस्‍तुति

Comment by बसंत नेमा on August 12, 2013 at 10:49am

अति सुन्दर चित्रण  आंखो के सामने पूरा बिम्ब उभर के आगया ...बधाई  आ0 प्रियांका जी 

Comment by Sulabh Agnihotri on August 12, 2013 at 9:46am

बहुत सुन्दर बिम्ब उकेरे हैं प्रियंका जी ! मन की हताशाओं के बीच झांकती हुई रोशनी की किरण को क्या सुन्दर अभिव्यक्ति दी है, बधाई।

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