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उन्हें ख्वाबो में देखता हूँ

एक कोशिश विरह रस की कविता कहने की आशा है आप सब को पसंद आएगी

फिर से सावन की घटा छाई है
तन्हाई में मुझे तेरी याद आई है
क्यों है दूर मुझसे तू न जानू
क्यों है मजबूर मैं न जानू

है कुछ मेरी भी मज़बूरी 
बिन तेरे मैं भी अधूरी
क्या बताऊ दिल का हाल
करता है मुझे ये बेहाल

तुमसे मैं क्या करू सवाल
मेरा क्या तुम बिन हाल
मैं कहु कैसे मेरी प्रियतम
सहा है कितना मैंने सितम

मैं समझती हूँ तेरे दिल का हाल
तेरे बिन मुझे भी नहीं आता करार 
 यादे तेरी सोने नहीं देती मुझे
आती है आक्सर रातो में मुझे

तुझ बिन न सुर है
न ताल है न लय है
फिर भी मेरा तो
जीना बिलकुल तय है

आज भी सलवटे
बिस्तर की देखता हूँ 
 तेरे संग जो बिताये पल
उन्हें ख्वाबो में देखता हूँ ....... उन्हें ख्वाबो में देखता हूँ.......उन्हें ख्वाबो में देखता हूँ.......उन्हें ख्वाबो में देखता हूँ।।।।

केतन परमार (अनजान )

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 401

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Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 2:16pm

ji dhanyvaad Dr. Prachi Singh ji aapka

saadar sweekare


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 11:59am

विरह भाव पर तुकबंदी का प्रयास ठीक है.. लेकिन एक सुन्दर कविता बनने के लिए इस भाव को और अभिव्यक्ति को लंबा सफर पार करना होगा..

सादर शुभेच्छाएँ 

Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 10:44am

annapurna bajpai or Abhinav Arun

aapka sukriya

saadar

Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 10:43am

sukriyaa adarniya ji

mujhe kavita kahne ka gyan nahi hai bas jo ek mujhe ehsaas hua usi ko shabdo me utarne ki koshish hai


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:56am

इस सनातन भाव को तनिक और पगने दें,  भाईजी.

आप सुर पर शब्द साधते चले गये हैं परन्तु, कविता के लिहाज़ से इस प्रस्तुति को अभी और सधना होगा.. 

शुभेच्छाएँ

Comment by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:14pm

भावों को सुन्दर शब्द मिले हैं  बहुत बधाई आपको इस प्रस्तुति पर !!

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 6:46pm

वाह काफी सुंदर ख्वाब बुने , इस रचना के लिए बधाई ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 23, 2013 at 3:48pm

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