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भगतसिंह और डा लोहिया

भगतसिंह और डा लोहिया

शहीद ए आजम भगतसिंह और डा.राममनोहर लोहिया के व्यक्तित्व और विचारधारा के मध्य कुछ ऐसा अद्भुत अंतरसंबध विद्यमान है, जिस पर कि अनायास ही निगाह चली जाती है। सबसे पहले तो 23 मार्च की वह अति विशिष्ट तिथि रही है, जोकि भगतसिंह का शहादत दिवस है और डा.राममनोहर लोहिया का जन्म दिवस है। दोनों का ही जन्म ऐसे परिवारों में हुआ जोकि जंग ए आजादी के साथ संबद्ध रहे थे। भगतसिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह पंजाब में आजादी के आंदोलन की एक जानी मानी शख्सियत थे और उनके पिता सरदार किशन सिंह भी जंग ए आजादी से जुड़े हुए थे। अपने बाल्य काल से ही भगतसिंह को देश पर मिटने के संस्कार हासिल होते हैं। 12 साल का भगतसिंह अपने खेत में बंदूके बोने की बातें करता है। ताकि उनकी फसल उगा कर अंग्रेजों से संग्राम कर सके। जलियांवालाबाग से मिट्टी लाकर वतन की आजादी के लिए संघर्श करने का अहद लेता है। राममनोहर लोहिया के पिता हीरालाल व्यवसायी परिवार के थे, किंतु वह नेशनल कांग्रेस के साथ गहन रुप से संबद्ध थे। मात्र 8 वर्ष की आयु में बालक राममनोहर ने स्वातंत्रय संग्राम के योद्धा अपने पिता के साथ इंडियन नेशनल कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में शिरकत की।
भगतसिंह अपने बाल्यकाल से ही अत्यंत मेधावी और जबरदस्त तौर पर अध्ययनशील थे। यह विशिष्ट गुण राममनोहर लोहिया की शख्सियत में भी देखने को मिलता है। अपने बचपन से ही वह भी भगत सिंह की तरह अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के रहे। बर्लिन प्रवास के दौरान जिस तरह से जर्मन भाषा को मात्र तीन महानों मे सीख लिया था, उससे तो उनके प्रोफसर जोम्बार्ट आश्चर्य चकित रह गए थे। भगतसिंह को न केवल उनके अप्रतिम साहस, अविचल देशभक्ति, अनुपम दृढता और आत्मोसर्ग की महान् भावना के कारण ही सदैव याद किया जाता है, वरन देश के क्रंातिकारी आंदोलन को एक महान् समाजवादी दिशा प्रदान करने के लिए उनके तेजस्वी वैचाधारिक प्रभाव के कारण भी उनका स्मरण किया जाता है। अपनी फांसी से सिर्फ एक दिन पहले ही भगत सिंह ने कहा था कि ‘मैं क्रंाति का मूलमंत्र बन गया हूं।’ भगत सिंह और डा.राममनोहर लोहिया दोनों ही देशभक्ति से ओतप्रात संस्कारों का लेकर जंगे ए आजादी में सक्रिय हुए। भगतसिंह भारत के क्रांतिकारी आंदोलन में समाजवाद के सिद्धांतों को समझने वाले एवं अंगीकार करने वालो में अग्रणी योद्धा बनें। यहां तक कि भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी दल ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ को प्रेरित किया कि वह अपना मक़सद देश की संपूर्ण आजादी हासिल करने के साथ ही साथ समतामयी समाजवादी समाज की स्थापना करना भी घोषित करे। फिरोजशाह कोटला मैदान की महत्वपूर्ण मीटिंग में भगत सिंह ने अपने सभी साथियों और अपने क्रांतिकारी नेता चंद्रशेखर आज़ाद को समाजवाद के सिद्धांतों को समझने और ग्रहण करने के लिए तैयार किया। भगत सिंह ने ब्रिटिश राज से मुक्त आजाद भारत में मजदूर किसानों के राज्य की संस्थापन करने की जोरदार प्रस्थापना प्रस्तुत की। भगत सिंह की शानदार पहल और जोरदार प्रयास के परिणामस्वरुप ही क्रांतिकारी दल के नाम के साथ ‘सोशलिस्ट’ शब्द संलग्न किया गया।
डा.राममनोहर लोहिया ने आजाद हिंदुस्तान में किसान मजदूरांे का ‘सार्वभौमिक समाजवादी राज्य’ स्थापित करने के लिए कड़ा संघर्ष मरते दम तक जारी रखा। भगत सिंह ने आज़ादी के लिए जारी क्रांतिकारी संघर्ष में रणनीतिक तौर आतंकवादी तरीकों का पूर्णतः परित्याग करके किसान मजदूरों में क्रांतिकारी चेतना उत्पन्न करने की पैरवी की थी और यह भी ऐलान किया था कि ‘मैंने एक आतंकवादी तरह अपने क्रंातिकारी जीवन के प्रारम्भिक काल में कार्य किया, किंतु मैं कदाचित आतंकवादी नहीं हूं। मैं एक क्रांतिकारी हूं, जिसके पास सुनिश्चित विचार हैं और दीर्घकालीन कार्यक्रम है।’ अपनी आत्म आलोचना करके भगत सिंह ने एक जबरदस्त मिसाल कायम कर दी।
डा.राममनोहर लोहिया भी समाजवाद का परचम लेकर जंग ए आजादी में कूद पड़े। सन् 1934 में अंजुमन ए इस्लामिया हाल, पटना में ‘कांग्रेस समाजवादी पार्टी’ की जब आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में स्थापना हुई तो राममनोहर लोहिया ने उसमें विशिष्ट भूमिका निभाई। इस स्थापना समारोह में डा. लोहिया ने समाजवादी आंदोलन की भावी रुपरेखा पेश की थी। भारत छोड़ो आंदोलन में राममनोहर लोहिया के क्रांतिकारी तेवर के दीदार होते हैं, जबकि 8 अगस्त 1942 को वह जयप्रकाश नारायण के साथ हजारीबाग जेल से फरार होकर, कुछ अन्य समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर जिनमंे अच्चुत पटवर्धन, उषा मेहता, एफ. नारीमन आदि प्रमुख थे, भारत छोड़ो आंदोलन की कयादत की। ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकने के लिए जिस तरह के विशाल जन क्रंातिकारी आंदोलन की आवश्यकता का भगत सिंह ने तसव्वुर किया था, उसकी झलक किसी हद तक सन् 1942 के क्रांतिकारी आंदोलन में परिलक्षित होती है। यह अहिंसक आंदोलन एक कं्रातिकारी आंदोलन में परिवर्तित हो जाता है, जिसमे तकरीबन दस हजार भारतवासियों का कं्रातिकारी बलिदान हुआ। हजारों किलामीटर रेल की पटरियां उखाड़ फेंक दी गई । हजारों शासकीय डाकघर नष्ट कर दिए गए। भारतवर्ष के बलिया, कोल्हापुर, मुर्शिदाबाद जैसे अनेक इलाके अंग्रेजी राज से आजाद करा लिए गए। नेपाल में भूमिगत तौर पर जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर डा. लोहिया ने गुरिल्ला संग्राम के लिए आजाद कं्रातिकारी दस्ते तैयार किए। आखिरकार मुंबई में 20 मई 1944 में डा लोहिया गिरफ्तार हो गए। संयोगवश जयप्रकाश नारायण और डा राममनोहर लोहिया को लाहौर किले की उसी जेल में रखा गया जिसमें कि भगत सिंह और उनके साथियों को रख गया था। दोनांे समाजवादी नेताओं का उसी तरह से ब्रिटिश पुलिस द्वारा अमानवीय टार्चर किया गया, जिस तरह से भगत सिंह और उसके साथियों का किया गया था।
भगत सिंह और उनके साथी जहां एक तरफ साम्रज्यवाद के विरुद्ध संग्राम करने के लिए तत्पर रहे, वहीं सामाजिक रुढियों, अंधविश्वासों और सांप्रदायिकता के बरखिलाफ भी बख्ूबी संघर्ष करते रहे। एक वैज्ञानिक राष्ट्रीय चिंतन को निर्मित करने में भगत सिंह की पार्टी ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की अहम भूमिका रही। आजादी के दौर में भगत सिंह द्वारा प्रारम्भ किए गए सामाजिक क्रांति के कार्य को समाजवादी एवं साम्यवादी योद्धाओं ने एक हद तक आगे बढया। आचार्य नरेंद्र देव की अगुवाई में राममनोहर लोहिया ने सामाजिक-सांस्कृतिक मुहिम को बहुत हिम्मत और सूझ बूझ के साथ आगे बढाने का संजीदा प्रयास किया। आर्थिक तौर पर विभाजित वर्गीय समाज में सामंती जातिवाद पर प्रबल प्रहार जारी रखा, जोकि सांप्रदायिक विष की तरह ही मेहनतकश जनता के मध्य फूट डालने का कारगर अस्त्र रहा है। रामायण मेलांे की परिकल्पना और आयोजन के साथ डा. लोहिया ने भारतीय संस्कृति के तेजस्वी प्रगतिशील संस्कारों को समाजवादी आंदोलन के साथ एकाकार करने की सार्थक पहल अंजाम दी ।

प्रभात कुमार राॅय

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Comment by prabhat kumar roy on January 11, 2011 at 7:10am
MADAM ASHA PANDEY OJHA, heartily thanks for your's remark on article. You are a superb poet & a grand personality.I like your poetry which has been full of emotions and sagacity. I do not know Hindi of your's level, but I strive my best to understand literary hindi.
Comment by asha pandey ojha on January 10, 2011 at 8:25pm
bahut kimtee aalekh isen sajha karne ke liye aapka hardik aabhar
Comment by prabhat kumar roy on November 30, 2010 at 7:15am
Thanks NAVIN C. CHATURVEDI for the your comment.

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