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आज दि. 03/ 03/ 2013 को इलाहाबाद के प्रतिष्ठित हिन्दुस्तान अकादमी में फिराक़ गोरखपुरी की पुण्यतिथि के अवसर पर गुफ़्तग़ू के तत्त्वाधान में एक मुशायरा आयोजित हुआ. शायरों को फिराक़ साहब की एक ग़ज़ल का मिसरा   --तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं--  तरह के तौर पर दिया गया था जिस पर ग़ज़ल कहनी थी. इस आयोजन में मेरी प्रस्तुति -

********
दिखा कर फ़ाइलों के आँकड़े अनुदान लेते हैं ।
वही पर्यावरण के नाम फिर सम्मान लेते हैं ॥

 

निग़ाहें भेड़ियों के दाँत सी लोहू* बुझी लेकिन
मुलायम भाव आँखों में  लिये  संज्ञान लेते हैं ॥

 

हमें मालूम है औकात तेरी, ऐ ज़माने, पर -
करें क्या, बाप हैं, चुपचाप कहना मान लेते हैं ॥

 

सलोने पाँव की थपथप, किलकती तोतली बोली..
तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं

 

पिशाची सोच के आगे उमीदें भी जिलाना क्या
भरे सिन्दूर जिसके नाम, वो ही जान लेते हैं.. . ॥

 

इधर जम्हूरियत के ढंग से है मुल्क बेइज़्ज़त
उधर वो ताव से सिर काट इसकी आन लेते हैं ॥

 

लुटेरे थे लुटेरे हैं.. ठगी दादागिरी से वो--
कभी ईरान लेते हैं, कभी अफ़ग़ान लेते हैं !!

******************

-सौरभ

 

*लोहू - लहू, खून

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2013 at 1:22am

आदरणीया राजेशकुमारीजी, आपको ग़ज़ल की कहन और भाव-विन्यास अच्छे लगे यह मेरे लिए भी संतुष्टिदायी है. उक्त मुशायरे में अपनी प्रस्तुति के कुछ फोटोग्राफ हमने इसी मंच पर साझा किये हैं. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2013 at 1:20am

भाई किशन कुमारजी, आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा इस हेतु हार्दिक धन्यवाद.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 3, 2013 at 11:30pm

आपकी रचना पर टिप्पणी करना तो सूरज को दिया दिखाना है।

फ़िर भी,,,, ये शानदार मतला,,,,

और उसी तरह हर सेर,,,,,,और तज़मीन और तज़मीन की गिरह तो क्या कहने है आदरणीय

 प्रणाम,प्रणाम,प्रणाम,,आपकी लेखनी को और ,मेरी ओर से भी बधाई इस

अप्रतिम रचना के लिए स्वीकारें।
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 10:20pm

सलोने पाँव की थपथप, किलकती तोतली बोली.. 
तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं ॥

आपकी रचना पर टिप्पणी करना तो सूरज को दिया दिखाना है। फिर भी दिल माना नहीं। मेरी भी बधाई इस अप्रतिम रचना के लिए स्वीकारें।
सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2013 at 9:23pm

शानदार मत्ला ,शानदार गिरह का शेर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने आदरणीय सौरभ जी
सलोने पाँव की थपथप, किलकती तोतली बोली..
तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं ॥-----नन्हे शिशु का एक सजीव चित्र उभर आया आंखों के सामने वाह बहुत प्यारा शेर
दाद कबूल कीजिये इस शानदार ग़ज़ल के लिए

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