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शक्ति रूपिणी हे माँ अम्बा l  वंदन स्वीकृत कर जगदम्बा ll

जय जय जय हे मातु भवानी l नत मस्तक हैं हम अज्ञानी ll

 

थामो माँ चेतन की डोरी l कर दो मन की चादर कोरी ll

हर क्षण हो इक नया सवेरा l तव प्रांगण नित रहे बसेरा ll

 

माँ ममता से हमको भर दो l हृदय प्रेम का सागर कर दो ll

अंगारे भी पग सहलाएँ l पुष्प बनें सुरभित मुस्काएँ ll

 

नयन समाय प्रेम की धारा l भटकन मन की पाय किनारा ll

वाणी बहे अमृत सी निर्मल l कर्म सहस्त्रान्शु सम उज्जवल ll

 

ऊँच – नीच के भ्रम मिट जाएँ l छुआ - छूत न हमें छू पाएँ ll

अहं – क्रोध से मुक्त रहे मन l लोभ मोह के टूटें बंधन ll

 

मधु कैटव नहिं हमें सताएँ l पाटन मध्य न हमें फँसाएँ ll

हर लो माँ चहुँ दिशि अँधियारा l तव ज्योति का करो उजियारा ll

 

अष्टसिद्धि नवनिधि की दाता l श्रद्धानत हैं हे जगमाता ll

हर इक कण में तुमको पाएँ l हम बूँदें, सागर बन जाएँ ll

 

तुष्ट हृदय कर झोली भर दो l चिदानन्द की वर्षा कर दो ll

सत रज तम के पार करो माँ l यह वंदन स्वीकार करो माँ ll

 

डॉ. प्राची 

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Comment by Saurabh Pandey on October 22, 2012 at 10:36pm

डॉ.प्राची, आपको चौपाई छंद पर प्रयास करते हुए देखना सुखद है. हिन्दी भाषा में चौपाई पर वैसे भी बहुत काम नहीं होरहा, जबकि 16 मात्रा के पद या चरण पर रचनाएँ आम हैं.

आपकी यह छंद-रचना नवरात्र में साझा हुई है, अतः इसकी गरिमा विशेष बढ़ जाती है.

सादर शुभेच्छा.. .

Comment by राज़ नवादवी on October 22, 2012 at 9:47pm

थामो माँ चेतन की डोरी l कर दो मन की चादर कोरी ll

सही कहा है आपने, क्षुद्र व्यक्तिनिष्ठ आत्मपरक  चेतना ही वैश्विक चैतन्य का पर्दा है. ग़ालिब ने भी कहा है, 'डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता' बधाई हो प्राची जी इस उद्गार भरी रचना के लिए! 

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