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केवल शो केसों में

बदल गयी नियति दर्पण की चेहेरो को अपमान मिले है , 
निस्ठायों को वर्तमान में नित ऐसे अवसान मिले है 

शहरों को रोशन कर डाला गावों में भर कर अंधियारे 
परिवर्तन की मनमानी में पनघट लहूलूहान मिले है,

चाह कैस्तसी नागफनी के शौक़ जहाँ पलते हों केवल 
ऐसे आँगन में तुलसी को अब जीवन के वरदान मिले है ,

भाग दौड़ के इस जीवन में मतले बदल गए गज़लों के 
केवल शो केसों में सजते ग़ालिब के दीवान मिले है 


गीत ग़ज़ल की देह तौलते अक्सर सुनने वाले देखा 
मन का बोझ बाँट ले ऐसे केवल कुछ इंसान मिले है 

कोई मील का पत्थर बनना क्यों बोलो स्वीकार करे 
हर युग में जब संगमरमर को महलों के सम्मान मिले है 

प्रगति हुयी कुछ ऎसी गति से उलटे सब विधान हुए , 
कमरों में हरियाली देखी उपवन सब वीरान मिले है 

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Comment by राजेश 'मृदु' on September 28, 2012 at 12:52pm

गीत ग़ज़ल की देह तौलते अक्सर सुनने वाले देखा
मन का बोझ बाँट ले ऐसे केवल कुछ इंसान मिले है

बड़ी अच्‍छी बात एवं सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई

Comment by वीनस केसरी on September 27, 2012 at 11:53pm

वाह
आपकी रचना और बेहतरीन कहन ने भाव विभोर कर दिया

Comment by सूबे सिंह सुजान on September 27, 2012 at 10:41pm

bhut hi sunder sher kahe hn............

कोई मील का पत्थर बनना क्यों बोलो स्वीकार करे 
हर युग में जब संगमरमर को महलों के सम्मान मिले है

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