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महाभारत का घटनाचक्र एक बार फिर से दोहराया गया ! लेकिन इस बार जुआ युधिष्ठिर नहीं बल्कि द्रौपदी खेल रही थी! देखते ही देखते वह भी शकुनी के चंगुल में फँसकर अपना सब कुछ हार बैठी ! सब कुछ गंवाने के बाद द्रौपदी जब उठ खडी हुई तो कौरव दल में से किसी ने पूछा:
"क्या हुआ पांचाली, उठ क्यों गईं?"
"अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा " द्रौपदी ने जवाब दिया !
तो उधर से एक और आवाज़ आई:
"अभी तो तुम्हारे पाँचों पति मौजूद है, इनको दाँव पर क्यों नहीं लगा देती ?"
द्रौपदी ने शर्म से सर झुकाए बैठे पांडवों की तरफ हिकारत भरी दृष्टि डालते हुए जवाब दिया:
"मैं इतनी बेग़ैरत नही कि अपने जीवन साथी को ही दाँव पर लगा दूँ!"

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Comment by Abhinav Arun on October 17, 2010 at 9:14am
वाह!परिपक्व लेखनी,मज़बूत लेखन,लाजवाब अंदाज़.मुबारक.
Comment by Ratnesh Raman Pathak on October 16, 2010 at 10:01pm
आप ने तो इन चंद लइनो में ही बहुत कुछ कह डाला ,धन्यवाद्
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 16, 2010 at 9:43pm
द्रौपदी का यह ताना आज के बेगैरत पतियों के लिए भी सटीक है ..इन मर्दों की पत्नियाँ आज भी शर्मदार हैं ..शायद यह समाज उनकी गैरत से ही चल पा रहा है...बढ़िया ख्याल ..बधाई

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