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मुझे चाहिए ऐसी ही रौशनी

"मुझे चाहिए ऐसी ही रौशनी "

लिखता हूँ
जो मन करता है
दिमाग की नशें नहीं खींचता
जोर आजमाइश कर कुछ नहीं निकलता
सिवाए तेल के
अब कोल्हू का बैल तो हूँ नहीं
मोती तो गहराई में होते हैं
कुछ शब्द डूबे हैं
दिल की गहराई में
जैसे ही उसमे कोई
कौआ पत्थर फेकता है
ऑटोमेटिक बह निकलती है उससे
सरस शब्द सरिता
लफ्ज लफ्ज
छोटे छोटे जलप्रपात जैसे
उनका कल कल बन जाता है
कभी गीत कभी ग़ज़ल
मैं नहीं जानता हूँ
आलोचना का अंस मात्र
संकोच करता हूँ
समीक्षा से
बस लिखता हूँ
"सही"
सच कोशिश यही होती है
न जाने किसी को गलत भी लगता होगा
कुछ आलोचना समझ लेते होंगे
कुछ तारीफ़ भी समझते होंगे
पर सच्चाई का पता नहीं
जानबूझकर लोग
अँधेरे कमरों में सी ऍफ़ एल ऑन करते हैं
बिजली का बिल कम आएगा
रौशनी ज्यादा होगी
लट्टू फियुज़ हो जाते हैं
गारंटी भी नहीं होती
एक साल की गारंटी
दिन रात जलाओ
ये तेज़ रौशनी
सीमित है घर की चार दिवारी तक
या कहूँ केवल
खाना पूर्ती करती है
घर के कौने कौने जगमगाने में
एक किरण भी नहीं झांकती है इसकी
दिल में , झूठ है सब झूठ ही तो है
कौन कहता है ,
सच में उजाला होता है
मैंने देखें हैं दीपक जलाते लोग
सच्चे होते हैं
दियासलाई जलाते हैं
और दीपक का प्रकाश
असीमित फैलता है
घर घर
अमावश के चाँद की तरह
ये सच है
मैं सच के साथ हूँ
मुझे चाहिए ऐसी ही रौशनी
तो क्या ये आलोचना है
नहीं न
सब देख लेते हैं लोग
आने वाली खुशियाँ
आने वाले गम
सबके पास है दिव्यदृष्टि
हाँ हाँ दिव्यदृष्टि
मैंने यदि आशा लगाई
मुझे विस्वास है
एक आस्था है
तो मैं एक बेबकूफ हूँ
हूँ न ??
ये भी झूठ है
या एक दम सच
नीम करेला या विष
शिव का विष
नीला दिखता नहीं क्या ??
शब्द शब्द
और जिसने देख लिया
पहले ही
कल क्या होगा
और मना ली खुशियाँ
और किया मातम
किया शोक
किया क्षोभ
दुनिया देखने का
छीन लिया अधिकार
विज्ञान ने
पाप है वो पाप
तुम हो ही इस सदी का
अभिशाप
डाकिनी पिशाचिनी
नर्कगामिनी
साइंस की बेबकूफी
दिव्यदृष्टि ................................

संदीप पटेल "दीप "

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 1, 2012 at 3:37pm

आदरणीय सम्पादक महोदय जी मेरी ये प्रतिक्रिया मेरे हर उस दिल अजीज के लिए थी जिनके सहयोग से मेरे लेखन में दिन प्रतिदिन निखार आया है ||


वैसे उसके मायने ऐसे कतई नहीं थे, समझ में न आने का अर्थ उसके भावों से था और उसमे शायद उनकी नहीं मेरी गलती थी

की भाव होते हुए भी वो बिना भाव के प्रतीत हुई होगी , यदि मेरी इस प्रतिक्रिया से किसी को ठेस पहुंची हो तो कृपया मुझे अपना चंचल अनुज समझ के क्षमा करेंगे

आप सभी का सदैव आभारी

Comment by Admin on August 1, 2012 at 2:41pm

//मुझे क्षोभ है इस बात का के मेरे शब्द आपको समझ नहीं आये //

आदरणीय संदीप जी, आप यह टिप्पणी किसे संबोधित करते हुए लिखा है ?

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 1, 2012 at 11:18am

मुझे क्षोभ है इस बात का के मेरे शब्द आपको समझ नहीं आये
या आपकी नज़र ही नहीं पड़ी या लेखन में कहीं न कहीं तो कमी रही होगी
वैसे मैं अत्यंत दुखी भी नहीं हूँ क्यूंकि कभी कभी कुछ बातें कुछ समय बाद समझ आती हैं
ये रचना तथाकथित आंदोलनों पर लिखी है जिन्हें गर्भ में ही मार डालने का प्रयास होता है
पहले ही परिणाम निकल आते हैं और पहले ही उसे निष्फल कर दिया जाता है

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