सुमन अपने सास को फोन कर रही थी तभी उसकी सहेली किरण वहाँ आ गई , सुमन उसे बैठने के लिए इशारा कर फोन पर बात करने लगी
"माँ जी, आप आ जाइये पप्पू रोज सुबह शाम आप को याद करता हैं .......
हाँ हाँ ! ये भी अपनी माँ को आपने पास पा कर बहुत खुश होंगे , ....
हाँ तो माँ जी आप कब आ रही हो ?
रविवार को ?
ठीक हैं माँ जी मैं इनको स्टेशन भेज दूंगी !"
चेहरे पर मुस्कान लिए फोन रख किरण से बोली
"कैसे आना हुआ ?"
किरण बोली
"तू आपने सास के आने पर इतना खुश क्यों है ? कोई लौटरी लगी हैं क्या ? एक तो खर्चा बढ़ा रही हैं ऊपर से इतना खुश ?"
तब सुमन बोली
"अरे किरण, लौटरी ही लगी समझ !"
किरण बोली "वो कैसे ?"
तब सुमन मुसुराकर बोली
"पहली बात. इतने कम खर्च में कोई काम वाली तो मिलने से रही, और दूसरा समाज में इज्जत भी बढ़ेगी की मैंने अपने सास को साथ रखा हुआ है, अब समझी पगली ?"
Comment
dhanyavad saurabh bhaiya
कुछ नहीं कहूँगा समाज के इस विद्रुप चेहरे पर. आपकी यह लघु-कथा आप द्वारा एक अच्छा प्रयास है.
शुभेच्छा..
dhanyavad ashish bhai
गुरु जी बहुत सही कटाक्ष लिखले बानी आप अपने एह कहानी में| ketna dukh होला अइसन बात सुन के|
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