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इ त अक्सर होला इ काहे होला जी ,

इ त अक्सर होला इ काहे होला जी ,
घर बढ़िया पाके दुलहिनिया रोये ली ,
माई के बदले सास भाई के बदले देवर जी ,
छोटकी बहिनिया जइसन ननदी जे होली ,
बाबु जी कमी पूरा करे ले ससुर जी ,
तबहू ना जाने काहे रहे ली उदास ,
मिले ले सजन जे रहेले उनका पास ,
कवन दुःख बाटे इ त ना बुझाला जी ,
घर बढ़िया पाके दुलहिनिया रोये ली ,
इ हो त सोचे के बाटे हो बतिया ,
नायकी कनिया आपन घर ना माने ली ,
ससुरा में कुछ नाहि नैहर में सब कुछु ,
इहे त मनवा में इहे उहो जाने ली ,
पहिला बरस जैसे तैसे में कटे ला ,
दूसरा बरस से सब आपन काहे ली ,
घर बढ़िया पाके दुलहिनिया रोये ली ,
नैहर के लोग बोले बबुनी हो रुक जा ,
रुके ली नाहि नव नव गो रोवेली ,
काम ख़राब होई माई तुहू जनिह हो ,
सचे इ बतिया बा हमरो इ मनिह हो ,
फिर कभी आयें माई मिलिए के जयेम,
सासु हमार हमारा बिना ना खाए ली ,
घर बढ़िया पाके दुलहिनिया रोये ली ,

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Comment

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Comment by Babita Gupta on April 10, 2010 at 10:21pm
Mai Ravi jee key kavita ko padhati hu achha lagata hai, yey kavita bhi achha hai
Comment by Sanjay Kumar Singh on April 10, 2010 at 7:23pm
jab akshar hola, ta kahey aap puchat baani ki kahey hola, arey honey dijiyey Ravi jee aap q tang adaa rahey hai, hahahahahahaha, arey mai majaak kar raha thaa, bytheway bahut badhiya kavita aap likhey hai,
Comment by Admin on April 9, 2010 at 6:05pm
गुरु जी बेहतरीन रचना बा ई राउर हमेशा के तरह, बात त राउर सही बा की दुल्हनिया रोवे ली पर का करस ? बेचारी आपन माई बाबू भाई बहिन जनम अस्थान सब छोड़ के एगो अजनबी के घरे जाली त रोअल त जायजे नु बा , वोही दुल्हनिया कुछ दिन के बाद पहिलका जनम के सब साथी के लगभग भुला के एगो नया जीवन साथी संगे ख़ुशी ख़ुशी दिन गुजारे ली , अब का कहल जाव इहेय दुनियादारी बा, जेके हम सब के निभावे के बा ,

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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