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हल्द्वानी में आयोजित ओ बी ओ ’विचार गोष्ठी’ में प्रदत्त शीर्षक पर सदस्यों के विचार : अंक 5

अंक ४ पढने हेतु यहाँ क्लिक करें…….

आदरणीय साहित्यप्रेमी सुधीजनों,
सादर वंदे !

ओपन बुक्स ऑनलाइन यानि ओबीओ के साहित्य-सेवा जीवन के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एमआइईटी-कुमाऊँ के परिसर में दिनांक 15 जून 2013 को ओबीओ प्रबन्धन समिति द्वारा "ओ बी ओ विचार-गोष्ठी एवं कवि-सम्मेलन सह मुशायरा" का सफल आयोजन आदरणीय प्रधान संपादक श्री योगराज प्रभाकर जी की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |

"ओ बी ओ विचार गोष्ठी" में सुश्री महिमाश्री जी, श्री अरुण निगम जी, श्रीमति गीतिका वेदिका जी,डॉ० नूतन डिमरी गैरोला जी, श्रीमति राजेश कुमारी जी, डॉ० प्राची सिंह जी, श्री रूप चन्द्र शास्त्री जी, श्री गणेश जी बागी जी , श्री योगराज प्रभाकर जी, श्री सुभाष वर्मा जी, आदि 10 वक्ताओं ने प्रदत्त शीर्षक’साहित्य में अंतर्जाल का योगदान’ पर अपने विचार व विषय के अनुरूप अपने अनुभव सभा में प्रस्तुत किये थे. तो आइये प्रत्येक सप्ताह जानते हैं एक-एक कर उन सभी सदस्यों के संक्षिप्त परिचय के साथ उनके विचार उन्हीं के शब्दों में...


इसी क्रम में आज प्रस्तुत हैं श्रीमती राजेश कुमारी जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....

संक्षिप्त परिचय

शिक्षा : स्नातक (अंग्रेजी साहित्य ,संस्कृत ,राजनीति शास्त्र )
स्नाकोत्तर (संस्कृत )
शौंक : कवितायेँ ,लेख ,कहानियां लिखना ,किताबें पढना, संगीत सुनना
प्रकाशित काव्य संग्रह : हृदय के उद्दगार
स्कूल कालेज के दिनों में वहां की पत्रिकाओं में तथा सूरज केसरी बुलेटिन में नियमित कालम में छोटो छोटी कवितायें प्रकाशित जिनसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली, छः -छः कवितायेँ सामूहिक काव्य संग्रह, खामोश खामोशी और हम और हृदय तारों का स्पंदन में प्रकाशित, रचनाएँ, यांत्रिकी देहरादून,शी सेज देहली ,हमारा घर ( परिवार कल्याण मंत्रालय) आदि पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित
कुछ रचनाएँ स्वर्ण आभा (राजस्थान ) में प्रकाशित |
वर्तमान योगदान: उत्तराखंड महिला एसोशिएसन की कार्यकारिणी सदस्य, धाद संस्था की सदस्या, सी० क्यू० ए० आई० देहरादून की महिला समीति की सचिव
उपलब्धि: अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर लखनऊ में बेस्ट राईटर (बेस्ट यात्रा वृतांत ऑफ़ ईयर) का खिताब मिला एवं परिकल्पना और तस्लीम ग्रुप के सौजन्य से सम्मानित किया गया ।

श्रीमति राजेश कुमारी जी का उद्बोधन


यह विषय हमको दिया गया है कि अंतरजाल का साहित्य में क्या योगदान है .. ये विषय एक ऐसा विषय है जो हम सभी से जुड़ा हुआ है.. क्योंकि आप भी लिखते हैं , मैं भी लिखती हूँ ..हम सभी का मंच भी एक ही है, और हमारा इंट्रस्ट भी एक ही है.. ये जो गोष्ठी का विषय दिया अगया है उसपर.हम सब के विचारों में .कहीं कहीं थोड़ा अंतर भी हो सकता है. जहाँ अंतरजाल का सकारात्मक रूप सामने आता है वहीं कहीं ना कहीं नकारात्मक रूप भी सामने आता है... लेकिन हमें देखना है कि इसका हमारे साहित्य में क्या योगदान है. मुझे बोलने को कहा गया तो सबसे पहले मैं अपने अनुभव से शुरू करना चाहती हूँ आज से ६-७ साल पहले मैं अंतरजाल को जानती भी नहीं थी, इससे जुड़ी भी नहीं थी ... बचपन से लिखने का शौक था तो कवितायेँ ,रचनाएँ लिखती थी और लिख कर डायरी में रख देती थी याँ बॉक्स में रख देती थी... इधर उधर बिखरी रहती थीं... कभी संकलन करने की सोची भी तो उसमें टाइम बहुत बर्बाद होता था.. बहुत टाइम की ज़रूरत थी जो उस वक़्त ..मैं नहीं दे सकती थी उसके बाद फिर मैं अंतरजाल से जुड़ी तो लगा कि ये तो अलग ही .दुनिया है जो बहुत विस्तृत है जहां ज्ञान का अपार भण्डार व्याप्त है और जहां आसानी से अपनी पहचान बनाई जा सकती है। ... धीरे धीरे अंतरजाल से जुड़ने के बाद सबसे पहले मैंने ब्लॉगिंग शुरू की.. ब्लोगिंग से नए और पुराने साहित्यकारों से मेरा परिचय हुआ.. और पता चला कि ब्लोगिंग पर ही नहीं पूरे अंतरजाल पर हमारे बहुत वरिष्ठ साहित्य पुराने नए एक अम्बार है उनका और हमें बहुत कुछ सीखने सिखाने को मिलेगा तो पहले तो मैंने धीरे धीरे रचनाएँ लिखने के साथ साथ नवसृजन के साथ साथ मेरा जो संकलन था उसको मैंने अंतरजाल पर फोल्डर डाल कर उसको संकलित किया.. उसी दौरान में ओबीओ से जुड़ी .. पहले लिखने का मेरा एक शौक हुआ करता था ...ओ बी ओ से जुड़ने के बाद एक जूनून बन गया । अंतरजाल को ही श्रेय जाता है कि हम लोग आभासी दुनिया को छोड़ कर एक सामने रूबरू अपनी अपनी रचनाओं की खुशबू फैलाने के लिए एकत्रित हुए हैं. ये एक अंतरजाल का ही सदुपयोग कहूंगी मैं इसको जिसने दूरियां मिटा दी हैं अंतर्जाल के द्वारा ही दूर दूर के लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों से जहाँ कोई अधिक व्यवस्था भी नहीं थी दूर दूर कस्बों मुहल्लों से निकल कर साहित्य व् ज्ञान की दुनिया में विदेशों तक अपने नाम का झंडा गाढ़ दिया है. ये सब श्रेय जाता है अंतरजाल को. अंतरजाल में एक हिन्दी भाषा ही नहीं, बल्कि सभी भाषाओं को विस्तार का रूप मिला है. अंतरजाल पर आप बहुत से सर्च इंजन देखेंगे गूगलजिसे तो आप अलादीन का चिराग ही समझो , विकिपीडिया, ट्वीटर .. इनसे एक क्लिक में आप एक से बढ़ कर एक रचनाओं का , ग्रंथों का यहाँ तक कि संस्कृत के महान ग्रंथों का आप पल भर में अवलोकन कर सकते हैं . ये श्रेय अंतरजाल को ही जाता है. इसके बाद मैं ये कहना चाहूँगी कि अंतरजाल एक ऐसा मंच है जहाँ पर हमें लिखने की स्वतंत्रता मिली है, लेखन की स्वतंत्रता,पाठन की स्वतंत्रता । जो विचार हमारे अंदर आते हैं उसको हम लिखें उसे शेयर करें, उस पर सकारात्मक टिप्पणी भी आयेंगी नकारात्मक भी आयेंगी, उसका विश्लेषण होगा , चर्चा होगी, उस दिशा में हमे अपने गुण अवगुण का ज्ञान होगा और अपने लेखन में वांछित सुधार भी होगा। कंप्यूटर के की-बोर्ड तक हिंदी साहित्य को लाने का श्रेय हमारी पीढी को जाता है... क्योंकि आज कल अंतरजाल पे भी हम लोग हिंदी को बढावा दे रहे हैं हिंदी साहित्य को बढावा दे रहे हैं.. एक युग था जब हिंदी साहित्य संस्कृत साहित्य शिलापत्रों पर ताड़पत्रों पर लिखा जाता था अब ये साहित्य वहाँ से निकल कर कीबोर्ड तक पहुँच गया है, इसका श्रेय जाता है अंतरजाल को.. और अंतरजाल में हम अपने साहित्य को चिर-आयु बना सकते है –कैसे? कि अंतरजाल में हम अपना जितना भी साहित्य है उसको सेव कर सकते हैं बशर्ते कि हम उसकी एक सोफ्ट कॉपी के साथ ही हार्ड कॉपी भी बनाएँ और अपने पास संकलित रख सकते हैं पब्लिशिंग के मार्ग में जिसमें वर्षों लग जाते थे किसी बुक को पब्लिशि होने में अंतरजाल के माध्यम से वो महीनों में काम पूरा हो जाता है..वक़्त की बचत होती है । अंतरजाल एक ऐसा साधन है, मैं तो कहूंगी एक ऐसा शिक्षक है अंतरजाल पर जो हर वक़्त आपके पास उपलब्ध रहता है.. ऐसी कई पाठशालाएं आपको अंतर्जाल पर मिलेंगी जिसमें वर्ण, वर्ग या जाति धर्म आदि का कॉलम आपको भरना नहीं पड़ता है, आप उसको खोलिए किसी भी साईट पर जाइए आप उससे ज्ञान ग्रहण कर लेंगे,अंतरजाल पर दर्शन , पाठन , श्रवण तीनों साधन एक साथ उपलब्ध हैं जिसका भी आप इस्तेमाल करके ज्ञान वर्धन कर सकते हैं . इसके अलावा अंतरजाल पर कई अच्छी ई-पत्रिकाओं आदि की अच्छी वेब साइट्स हैं जिससे हमारा ज्ञान वर्धन होता है और हमारे साहित्य को विस्तार मिलता है अंतरजाल के माध्यम से ही सभी साहित्यिक भाषाएँ अपनी भौगोलिक सीमाओं को छोड़ कर एक परचम लहरा रही हैं साहित्य के क्षेत्र में. इसके अलावा मैं ये कहना चाहूँगी कि अंतरजाल से हम साहित्यिक ज्ञानोपार्जन करते हैं ,इसका हम सदुपयोग करते हैं, लेकिन जैसे कि हर चीज़ के दो पहलू होते हैं एक सकारात्मक और एक नकारात्मक .. सकारात्मक पहलू पर मैंने काफी दृष्टि डाल दी है कि हम किस तरह ज्ञान का विस्तार कर सकते हैं अपने संग्रह को सुरक्षित रख सकते हैं तो मैं ये कहूंगी कि ये ज्ञान का समुद्र है लेकिन साथ साथ कुछ इसमें खामियां भी हैं जैसे द्वेष और शाब्दिक हिंसा. शाब्दिक हिंसा इससे आप समझ सकते हैं कि बहुत से नव रचनाकार आते हैं और कई वरिष्ठ साहित्यकार द्वेष के कारण कुछ ऐसा लिख देते हैं कि नवरचनाकार का आत्मविश्वास खत्म हो जाता है वहीं कुछ नव रचनाकारों को विद्वद्जनो वरिष्ठ साहित्यकारों के द्वारा किया गया मार्ग दर्शन स्वीकार नहीं होता वो सिर्फ सकारात्मक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करते हैं जिस भाव के वशीभूत हो गलत भाषा का इस्तमाल तक कर देते हैं .वो एक शाब्दिक हिंसा हुई.,इसके अलावा लेखन चोरी भी अंतरजाल पर बहुत आसानी से हो जाती है और हो रही हैं जो एक बड़ा अपराध है . तो ये आप पर निर्भर करता है कि आप इसको किस रूप में लें सकारात्मक रूप में या नकारात्मक रूप में,इसका सदुपयोग करें या दुरूपयोग !! ये हमारे पर निर्भर करता है कि हम अंतरजाल का सकारात्मक फायदा उठाएं या उसको गलत रूप में लें ।

अगले सप्ताह अंक 6  में जानते हैं ओ बी ओ प्रबंधन सदस्या डॉ प्राची सिंह जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2013 at 9:24am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी अपने शब्दों से कृतार्थ किया हार्दिक आभार आपका |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 2:00am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, हल्द्वानी में आपके विचारों से लाभान्वित नहीं हो पाया था. यहाँ वह कमी पूरी हो पायी है.

बहुत खूब .. .

सादर धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 28, 2013 at 8:06pm

प्रिय महिमा श्री जी आपको मेरे विचार पसंद आये हृदय  तल से आभारी हूँ ऐसे अवसर बार बार आयें आप सबसे मिलने के अवसर मिलें वैयक्तिक विचारों का आदान प्रदान होता रहे इसी मंगलकामना के साथ पुनः आभार |

Comment by MAHIMA SHREE on August 28, 2013 at 6:53pm

 // मैं तो कहूंगी एक ऐसा शिक्षक है अंतरजाल पर जो हर वक़्त आपके पास उपलब्ध रहता है.. ऐसी कई पाठशालाएं आपको अंतर्जाल पर मिलेंगी जिसमें वर्ण, वर्ग या जाति धर्म आदि का कॉलम आपको भरना नहीं पड़ता है, आप उसको खोलिए किसी भी साईट पर जाइए आप उससे ज्ञान ग्रहण कर लेंगे,अंतरजाल पर दर्शन , पाठन , श्रवण तीनों साधन एक साथ उपलब्ध हैं जिसका भी आप इस्तेमाल करके ज्ञान वर्धन कर सकते हैं//..... वाह आदरणीया राजेश दी बहुत ही सुलझा और उतकृष्ट दृष्टिकोण ... पुन: आपके विचारों को पढ़ कर ..बहुत अच्छा लगा .. साथ ही आपके व्यक्तिव के अन्य विशेष पहलुओ से भी एडमिन महोदय ने परिचय कराया उसके लिए आभार और धन्यवाद ...

Comment by Abhinav Arun on August 28, 2013 at 5:33pm

शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार आदरणीया !! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 28, 2013 at 5:20pm

 अभिनव अरुण जी उस गोष्ठी का हर पल ही समझो रिवाइज हो गया हम सौभाग्य शाली समझते हैं अपने आप को कि इस मंच की बदौलत हमें अपने साहित्य के  अन्तर में झाँकने  का अवसर मिला अपने विचार अनुभव एक दूसरे  से  सांझा करने का अवसर मिला ,हार्दिक आभार मेरे शब्दों को मान देने के लिए माँ शारदा की अनुकम्पा हमेशा आप पर बनी रहे  शुभकामनाएँ देती हूँ |

Comment by Abhinav Arun on August 28, 2013 at 5:07pm

परम आ. राजेश कुमारी जी आपके विषय में जानकर बहुत प्रसन्नता हुई आपके विचारों को पुनः पढना रिविजन जैसा है ..यह बहुत काम आएगा आपके अनुभव और आपकी सलाह अत्यंत समीचीन है . साधुवाद आदरणीया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 28, 2013 at 4:58pm

केवल प्रसाद जी आपको धन्यवाद कहना चाहूंगी कि आपने इस पोस्ट पर आकर अपने विचारों से इस उद्बोधन का अनुमोदन किया आपको मेरे विचार पसंद आये
पुनः हार्दिक आभार 

 माँ सरस्वती की कृपा से हिंदी साहित्य की सेवा में संलग्न रहकर आप सभी की अपेक्षाओं पर खरी उतरूँ अपना योगदान इस साहित्य  में   देती रहूँ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 28, 2013 at 4:52pm

 सर्व प्रथम मैं आदरणीय  एडमिन जी और प्रिय प्राची जी को हार्दिक आभार प्रकट  चाहूंगी जिन्होंने अथक परिश्रम से मेरे इस उद्बोधन को सबके समक्ष प्रस्तुत किया कोटि कोटि आभार ,आयोजन में गोष्ठी का यह विषय ही इतना सामयिक  था जिस पर विचार विमर्श व् सबका नजरिया अपना अपना पक्ष रखना सीखने सिखाने की प्रक्रिया में समय की  एक जरूरी  मांग थी जो एक  सार्थक आयोजन बन कर सबके समक्ष उभरा भविष्य में भी इस तरह की सफल साकारात्मक गोष्ठियाँ आयोजित की जाएँ यही   शुभकामना  है   

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 28, 2013 at 9:23am

आ0 राजेश कुमारी जी,  सादर प्रणाम!  // अन्तर्जाल के आंगन में हमारे साहित्य को हृष्ट-पुष्ट विस्तार मिलता है और यह सत्य भी है कि अंतरजाल के माध्यम से ही सभी साहित्यिक भाषाएँ अपनी भौगोलिक सीमाओं को छोड़ कर एक परचम लहरा रही हैं ...।// आपने बहुत सुन्दर बात कही है कि हम अन्तर्जाल का सकारात्मक लुफ्त उठाये और नकारात्मक को दिग्दर्शक मान कर छोड़ दें अथवा अनुसरण करें यह हमारी स्वच्छंदता है, फिर हम इसे गंभीरता से क्यों लें?  आपके सकारात्मक  पहलुओं और अन्तर्जाल के बृहद उपयोग का औचित्य वास्तव में अनुगामी और पथप्रदर्शक है। आशा है आप आगे भी हिन्दी साहित्य को समर्थ और समृध्दि करने में अपना अथक परिश्रम व बहुमूल्य योगदान करती रहेंगी।  आपका परिचय और आपके विचारों से भिज्ञ होकर बहुत अच्छा लगा। आपको ढेरों शुभकामनाओं सहित इस अप्रतिम आत्म कथा प्रस्तुति के लिए आपको हृदयतल से आभार।  सादर,

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