For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरी कुएँ सी प्यास

तेरी कुएँ सी प्यास
तेरी अघोरी भूख
भिखारन, तू नित्य मेरे आँगन में आती
एक धमकी
एक चुनौती
तेरे आशीष में होती
घबराकर मैं तेरी तृष्णा पालती.
तू मेरी धर्मभीरूता को खूब पहचानती
और, मेरी सहिष्णुता का गलत मतलब निकालती.

‘’दे अपना हाथ तुझे उबार दूँ.’’
तूने तड़प कर दुहाई दी
अपने कुनबे की.
भिखारन! तेरे कितने नाज़
तेरे कुकुरमुत्ते से उगते परिवार
गोंद से चिपके तेरे रीति रिवाज़

छोड़ अब माँगने की परम्परा.
काम कर, कुछ काम कर
चौका बासन कपड़े लत्ते धो
स्वाभिमान की रोटी पका
पर तू माने कब मेरी बात
मैं तुझे सहने पर मज़बूर.

रोज़ के उपदेशों से तंग आकर
एक दिन तूने कहा-
‘’माना कि नदी के होते दो किनार हैं
तू मालकिन मैं भिखारिन
तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती.’’ इतना कह
चल दी वह दूसरी गली मुस्काती
अपनी ही कथन से मात खाती
ठगी सी मैं रह गयी खड़ी.


(मौलिक व अप्रकाशित रचना)

Views: 745

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on January 30, 2014 at 5:00pm

आदरणीया कुंती दीदी बहुत सुंदर देती रचना , bahutबहुत बधाई आपको । 

Comment by Sarita Bhatia on January 30, 2014 at 4:06pm

वाह क्या बात कह दी कुंती दीदी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2014 at 4:00pm

आदरणीया कुंती जी , सच बात है , हर कोई भिखमंगा ही है , कोई किसी से मांगता है तो कोई किसी से !! बहुत सुन्दर रचाना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by pawan amba on January 30, 2014 at 1:09pm

तेरे कुकुरमुत्ते से उगते परिवार
गोंद से चिपके तेरे रीति रिवाज़

तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती.’’ इतना कह   bahut sundar...

Comment by Shyam Narain Verma on January 30, 2014 at 10:51am
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 
Comment by vandana on January 30, 2014 at 7:23am

तू मालकिन मैं भिखारिन
तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती.’’ 

शानदार रचना आदरणीया बहुत२ बधाई 

Comment by Meena Pathak on January 29, 2014 at 8:11pm

’माना कि नदी के होते दो किनार हैं
तू मालकिन मैं भिखारिन
तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती.’’ इतना कह
चल दी वह दूसरी गली मुस्काती
अपनी ही कथन से मात खाती 
ठगी सी मैं रह गयी खड़ी................. बहुत सुन्दर दी , बहुत बहुत बधाई आप को | सादर 

Comment by Neeraj Neer on January 29, 2014 at 7:28pm

बहुत सुन्दर ...माना कि नदी के होते दो किनार हैं
तू मालकिन मैं भिखारिन
तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती... क्या खूब कहा है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service