For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - नजरों को नजारे मिल गये // वेदिका

वज्न / २१२२ २१२२ २१२ 

चाह थी जिनकी, हमारे मिल गये 

गुम कहीं थे ख्वाब, सारे मिल गये.

 

एक धागा बेल के धड़ से मिला 

बेसहारों को सहारे मिल गये 

.

हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी 

और तुम बाहें पसारे मिल गये

.

डूबती नैया के तुम पतवार हो 

साथ तेरे हर किनारे मिल गये 

.

देख तुमको, जी को जो ठंडक हुयी 

यूँ कि नजरों को नजारे मिल गये 

.

सच अगरचे, देख के अनदेख हो 

झूठ जीतेगा, इशारे मिल गये    

                  

                             गीतिका ‘वेदिका’      

 

मौलिक / अप्रकाशित 

 

 

 

Views: 1057

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on August 7, 2013 at 9:07am

आभार आदरणीय बृजेश जी! 

Comment by वेदिका on August 7, 2013 at 9:06am

आभार आदरणीय अरुण जी! 

यह बारीक सुझाव मुझे देने के लिए मै आपकी शुक्र गुजार हूँ,,  

आभार आपका 

Comment by seema agrawal on August 7, 2013 at 12:50am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल गीतिका जी सभी शेर बढ़िया हए हैं पर ....

सच अगरचे, देख के अनदेख हो 

झूठ जीतेगा, इशारे मिल गये  ...........इस शेर में जिस मासूमियत से कड़वी सच्चाई बयान हुयी है उसका जवाब नहीं ...हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on August 6, 2013 at 11:34pm

बहुत ही सुन्दर! लाजवाब! आपको हार्दिक बधाई!

आपकी रचना का सबसे सुन्दर शेर-

//हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी 

और तुम बाहें पसारे मिल गये//

और सबसे कमजोर शेर-

//एक धागा बेल के धड़ से मिला 

बेसहारों को सहारे मिल गये// 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2013 at 11:00pm

आदरणीया गीतिका जी, शानदार गज़ल के लिये बधाइयाँ स्वीकार कीजिये.हर शेर लाजवाब है.

डूबती नैया के तुम पतवार हो 

साथ तेरे हर किनारे मिल गये

आदरणीया एक ही रचना / गीत / गज़ल में  तुम और तू (तेरे) का प्रयोग उचित नहीं माना जाता है. कृपया ऐसे प्रयोगों से परहेज करें

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 9:46pm

आदरणीय राणा प्रताप जी! 

गज़ल पर आपकी उपस्थिति मेरे लिए प्रेरणादायी है !

साभार !!

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 9:45pm

स्नेही आशीष जी! 

गज़ल पर दृष्टिपात करने हेतु मै आपकी आभारी हूँ !!

सादर !!

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 9:44pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी! 

आपका आभार आपने रचना कर्म को उत्साहित किया !!

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 9:44pm

आदरणीय श्याम नारायण जी!

आपका आभार आपने रचना पसंद की 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 6, 2013 at 9:29pm

हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी 

और तुम बाहें पसारे मिल गये 

ख़ूबसूरत शेर| बधाई हो|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला नहीं हुआ,  जनाब  ! मिसरे परस्पर बदल कर देखिए,  कदाचित कुछ बात  बने…"
31 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आराम  गया  दिल का  रिझाने के लिए आ हमदम चला आ दुख वो मिटाने के लिए आ  है ईश तू…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्श के लिए आभार। तीसरे शेर पर…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी हुई। बाहर भी निकल दैर-ओ-हरम से कभी अपने भूखे को किसी रोटी खिलाने के लिए आ. दूसरी…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी निबाही है आपने। मेरे विचार:  भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आ इन्सान को इन्सान…"
4 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122 1 मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।वादे जो किए तू ने निभाने के लिए…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपने ठीक ध्यान दिलाया. ख़ुद के लिए ही है. यह त्रुटी इसलिए हुई कि मैंने पहले…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी, आपकी प्रस्तुति का आध्यात्मिक पहलू प्रशंसनीय है.  अलबत्ता, ’तू ख़ुद लिए…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी की विस्तृत विवेचना के बाद कहने को कुछ नहीं रह जाता. सो, प्रस्तुति के लिए हार्दिक…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"  ख़्वाहिश ये नहीं मुझको रिझाने के लिए आ   बीमार को तो देख के जाने के लिए आ   परदेस…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service