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गज़ल: पूछने पे अगर आये तो सवाल बहूत है.

पूछने पे अगर आये तो सवाल बहूत है.
तेरे काले करतूतों की मिशाल बहूत है.

सियासत तूने जबसे गोद ली बेईमानों कों,

तब से मेरी भारत माँ, बदहाल बहूत हैं.

 

हमारी वोट से तुम नोट का बिस्तर सजाते हो,
हमारी सब्र और तुम्हारे ऐश के 5 साल बहूत है

बेबस,मजलूमों के आहों का सौदा करनेवालों,

मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है

 
रोती है वतन की मिट्टी,बेदर्द रहनुमा निकला,
जम्हूरियत को अपने फैसले पे मलाल बहूत है.
 
 
 
 

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on May 4, 2013 at 1:02pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by अरुन 'अनन्त' on May 4, 2013 at 7:43am

अंसारी साहब ग़ज़ल पर आपका प्रयास अच्छा है, ग़ज़ल के लिहाज़ से कमियां रह गई हैं यहाँ आये हैं तो सीख ही जायेंगे. शुभकामनाएं


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 9:54pm

संभवतः आप ग़ज़ल पर अभ्यास करनाशुरु किये हैं. इसी कारण यह ग़ज़ल इस मंच पर स्थान पा सकी है.

आगे से आप ग़ज़ल संबंधी मूलभूत नियमों का अध्ययन करें. शुभेच्छाएँ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 3, 2013 at 9:27pm

आ0 नूरैन जी, ’’रोती है वतन की मिट्टी, बेदर्द रहनुमा निकला,
जम्हूरियत को अपने फैसले पे मलाल बहूत है।
’’ अतिसुन्दर गजल। बधाई स्वीकारें। सादर,

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