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छंद सरसी में एक रचना (राजेश कु0 झा)

खुरच शीत को फागुन आया

फूले सहजन फूल

छोड़ मसानी चादर सूरज

चहका हो अनुकूल

गट्ठर बांधे हरियाली ने

सेंके कितने नैन

संतूरी संदेश समध का

सुन समधिन बेचैन

कुंभ-मीन में रहें सदाशय

तेज पुंज व्‍योमेश

मस्‍त मगन हो खेलें होरी

भोला मन रामेश

हर डाली पर कूक रही है

रमण-चमन की बात

पंख चुराए चुपके-चुपके

भागी सीली रात

बौराई है अमिया फिर से

मौका पा माकूल

खा *चासी की ठोकर पतझड़

फांक रही है धूल

चासी : कृषक

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Saurabh Pandey on March 6, 2013 at 6:13pm

सुन्दर सम्यक छंद बने हैं, वाह-वाह हे तात !

मनस-आवरण फागुन-चैता, पुलकें संझा-प्रात

शिल्प कहे चत्वार चरण पर, यह प्रेषण अनुमन्य

देह-भाव, मन-भाव सुखद है, पैनी दृष्टि धन्य !!

बधाई-बधाई-बधाई..  

शुभ-शुभ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 6, 2013 at 5:07pm

वाह वाह वाह आदरणीय बड़ा ही मन भावन लगा ये छंद .....................सादर बधाई हो

कृपया ध्यान दे...

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