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मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम

मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम

और फिर इसे तुम अधर धरो

.............................................

.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै

 पाऊं कान्हा को राधिका बन 

..........................................

रोम रोम यह कम्पित हो जाए

तन मन में कुछ ऐसा भर दो

............................................

प्रेम नीर भर आये नयनों में

शांत करे जो ज्वाला अंतर की 

..........................................

फैले कण कण में उजियारा

और हर ले मन का अँधियारा

.........................................

मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम

और फिर इसे तुम अधर धरो

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on March 7, 2013 at 11:44pm

आदरणीय सौरभ जी ,आपको मेरी रचना पसंद आई,उत्साह्वर्धन हेतु मेरे लिए आपका कमेन्ट ही बहुत अमूल्य था ,नाम से क्या अंतर पड़ता है क्षमा की कोई आवश्यकता ही नही ,आपका हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2013 at 11:56pm

सादर प्रणाम, आदरणीया रेखा जी,

इस भयंकर भूल के लिए हृदय से क्षमा याचना.. . 

सादर

Comment by Rekha Joshi on March 4, 2013 at 10:12pm

वेदिका जी ,ऐसे ही प्रेरणा देते रहिये ,आभार .

Comment by Rekha Joshi on March 4, 2013 at 10:11pm

आदरणीय जवाहर जी ,ऐसे ही उत्साह बढाते रहिये ,आभार .

Comment by Rekha Joshi on March 4, 2013 at 10:09pm

आदरणीय सौरभ जी ,मै रेखा हूँ ,आपको रचना पसंद आई आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार 

Comment by Rekha Joshi on March 4, 2013 at 10:07pm

आ सतवीर जी ,आ राज जी ,आपको रचना पसंद आई आपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद .

Comment by वेदिका on March 4, 2013 at 8:33am

बहुत ही प्यारी रचना ,,, भक्तिमय प्रेममय रचना 

शुभकामनायें आदरणीया रेखा जी 

सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 4, 2013 at 7:46am

बहुत ही सुन्दर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2013 at 1:40am

इन सरस द्विपदियों के लिए आदरणीया राजेशजी, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 4, 2013 at 1:18am

बहुत ही सुन्दर  रचना हेतु बधाई आपको रेखा जी |

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