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इस तरह दूर वो आजकल हो गई।

जैसे इस शहर की बिजली गुल हो गई।

देह तेरी  किसी  बेल  जैसी लगे,

आई बरसात धुलकर नवल हो गई।

इस तरह रास्ते और लम्बे हुये,

जैसे के मेरी लम्बी ग़ज़ल हो गई।

बेवफा क्या बताऊँ तेरी बाट में,

प्यार की बर्फ पिघली,और जल हो गई।

आम की भोर पर भंवरे जो आ गये

मुस्कुराहट मधुरता  का  फल हो गई।

एक बरसात आई तुम्हारी तरह,

और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।

                                      सूबे सिंह सुजान

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Comment by सूबे सिंह सुजान on August 24, 2012 at 10:00pm

Saurabh Pandey............ji namskar aapka dnyawad..........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 11:50pm

सादर धन्यवाद, भाईजी.

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 10:49pm

सौरभ जी, मैं कह चुका हूँ क्षमा की कोई आवश्यकता नहीं है।। नाम का क्या है कुछ भी रख दो।।अब सबके घरों में दो-दो या इससे भी अधिक नामों का प्रचलन हो गया है। माँ बाप खुद बच्चों के नाम बिगाडते हैं ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 10:41pm

नामों के प्रति मैं अत्यंत संवेदनशील रहता हूँ, भाई सूबे सिंह सुजानजी.  फिरभी भूल हुई.  मैं हृदय की गहराइयों से क्षमाप्रार्थी हूँ.

सादर

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 10:36pm

Saurabh Pandey....जी, मेरे नाम में चौहान नहीं,   सुजान है।।।।

मैं हैरान होता हूँ। याहू ग्रुप में भी ऐसा ही होता है कंई बार कईं कवि मुझे चौहान ही लिख जाते हैं,,,,,,,,,,खैर कोी बुरा नही है चौहान भी, नाम तो नाम है।।।कुछ भी रख लो...........आखिर जाना ही तो है दुनिया से सब नामों को..............

आपने कहा, कि मतले की कहन ने चौंकाया है............ये तो आपने मुझे ढंडस दिया है।। धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 10:22pm

भाई सूबे सिंह चौहान जी, अपनी ग़ज़ल पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें. हिन्दी शब्दों का अन्यतम प्रयोग हुआ है. यह अत्यंत संतुष्टिदायक है.

मतले की कहन ने जिस तरह से चौंकाया है वह आपकी ग़ज़लों के प्रति उम्मीद बढ़ाती है.  हार्दिक बधाई.. .

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 10:12pm

seema agrawa.........आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया है। आपके द्वारा लिखित शब्दों ने मुझे उत्साहित किय़ा है। मुझे अब इससे अच्छी ग़ज़ल कहनी ही पडेगी। आपके द्वारा जो तारीफ की गई है वह अमूल्य है मेरे लिये।

                                                                            बेहद शुक्रिया

Comment by seema agrawal on August 23, 2012 at 10:06pm

वाह बिलकुल नए अंदाज़ की बातें ...हिंदी के शब्दों का बहुत सुंदरता के साथ प्रयोग हुआ है आपकी गज़ल में 

देह तेरी  किसी  बेल  जैसी लगे,

आई बरसात धुलकर नवल हो गई।......क्या बात है !!!!!

एक बरसात आई तुम्हारी तरह,

और जोहड में खिल कर कमल हो गई।    वाह !!!!!

 हार्दिक बधाई सुजान जी 

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 9:54pm

वीनस केसरी.............जी, आपकी नज़र को ग़ज़ल अच्छी लगी मन प्रसन्न हुआ की कंही न कंही मैं लिखने लायक तो हुआ। वरना काफी दिनों से ग़ज़ल लेखन करने के बाद भी कईं बार उस्तादों से डांट खानी पडती है।

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 9:52pm

Rajesh Kumar Jha.... झा जी आपने मीठी ग़ज़ल कहा तो मुझे आपकी मिठास का अनुभव होने लगा है।

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