For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनो तुम

न जाने कहाँ हो!

तुम्हें देख रही है मेरी आँखें

तुम्हें ताक रहीं है मेरी राहें

तुम्हें थाम रहीं है मेरी बाँहें

लेकिन तुम नहीं हो 

बहुत दूर दूर तक

बहुत दूर ...के पार

हाँ! शायद तुम वहाँ हो

सुनो तुम...

 

जाने, तुम हो भी या नहीं

कभी तो लगता है यही

पर तुम्हें होना चाहिए

है न

पर मै नहीं हूँ

तुम्हारे होने तक

मेरी नज़रें

नही जातीं वहाँ तक

कि तुम जहाँ हो

सुनो तुम,

न जाने कहाँ हो

कहाँ हो

कहाँ हो ....! 

             - गीतिका 'वेदिका'

(मौलिक/ अप्रकाशित) 

 

 

 

Views: 770

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 1:23am

इसी मंच पर मैंने इधर की कुछ अतुकान्त रचनाओं को समझने का प्रयास किया है आप उन पर मेरे निवेदन को देख जायें, आदरणीया.

अतुकान्तता सहज प्रतीत होती अवश्य है, लेकिन उसकी वैचारिकता अध्ययन मांगती है. अन्यथा रचनाकर्म या तो उथला होजाता है अथवा असहज.  यह कुछ ऐसा ही है .. क्षुरस्यधारा निशिता दुरत्यया दुर्गम पथः इति.. . छुरे की धार पर चलने के समान यह अत्यंत दुर्गम राह है.

सादर

Comment by वेदिका on August 27, 2013 at 1:18am

आदरणीय सौरभ जी!

आपकी प्रतिक्रिया सदैव ही महत्वपूर्ण है

तथापि एक सत्य उद्घाटित करुँगी कि अतुकांत रचना को लिख कर मै और साथी रचनाकार आपकी समीक्षात्मक दृष्टी का इंतजार किया करते है| आप का अनुमोदन मिल जाना मानो रचना पास हो गयी| 

आभार आदरणीय !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 8:29pm

परम की पुकार का प्रवाह सार्थक है. मनन ने रचनाकर्म को विशेष आयाम दिये हैं. आपसे सार्थकता की आशा सहज हो गयी है.

बहुत-बहुत बधाई..

Comment by वेदिका on August 21, 2013 at 2:59pm

आभार आदरणीय अमन जी!

सादर !!

Comment by aman kumar on August 21, 2013 at 2:52pm

कविता मे अंतर्निहित दशा .....माफ़ कर दे !नीरज जी के साथ बह गया मे  ,,,, खाली लिखने के लिए तो कोई कविता नही लिखी जाती , कही न कही मनोदशा भी साथ देती  ही है  बाकि आप जानती ही है भाव कहा से उपजा .......

Comment by वेदिका on August 21, 2013 at 2:44pm

आदरणीय अमन जी!

कवित्री की मनोदशा या कविता में अंतर्निहित दशा ???

Comment by aman kumar on August 21, 2013 at 2:24pm

कवित्री की मनोदशा समझने बाले श्रोता भी बिरले ही होते है नीरज जी आप सच्चे पाठक  हो |

Comment by बृजेश नीरज on August 21, 2013 at 8:20am

विरह के क्षणों में ऐसा ही होता है आंखें ढूंढती हैं, राहें तकती हैं, बाहें थामने को आतुर हैं लेकिन वह जिसकी चाहना है उसका सानिध्य नहीं होता। ऐसे क्षणों में प्रशंसा भी आलोचना लगती है, मन व्याकुल जो है। तभी तो अमन जी की प्रशंसा ने भी मन में शंका पैदा कर दी।
बहुत अच्छी भावाभिक्ति। आपको हार्दिक बधाई।

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 6:13pm

ह्रदय की पुकार .. वेदना में पग कर ...उभरी है ..निखरी है रचना में ...सौ सौ बार बधाई सशक्त रचनाकार को इस स्तुत्य प्रस्स्तुती हेतु !

Comment by aman kumar on August 20, 2013 at 5:07pm

हम सब सीखते ही तो है हर स्थान पर हर मोड़ पर . 

आपका आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service