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Often, a beautiful thing unties

With a beautiful surprise:

That explains you came how,

And your absence until now.

 

For you hold me so tight,

That all those broken pieces

Scattered being black and white

Came together again, right.

 

For, those precious moments I live,

In which I find myself beside you;

Give me a strange happiness, new

That no money or magic can give.

 

So, may you reflect all in me:

In what I do and what I see;

In my words unsaid,

And in the goodness in me.

 

And may everything I do,

I do to be closer to you;

In lives that I’ll live through,

And in the one I have due.

 

Composed by:

Shivam Jha

Dedicated to:

Shri Krishna (श्रीकृष्ण)

Original Post

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"जय-जय "
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"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
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"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
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"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
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"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
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