आज शुभ घड़ी होली आई!!!
बच्चों देखो होली आई।
रंग बिरंगी होली आई।।
होलिका तु पहलाद की बुआ।
इसको कभी न आग ने छुआ।।
हिरनाकश्यप की है बहना।
लाज शर्म न इसका गहना।।
कर्मो से यह बिलकुल डायन।
होली चली प्रहलाद को दाहन।।
बृहमा का वर उलटा पाया।
जली होलिका होली भाया।।
प्रहलाद को मिल रंग लगाये।
जोगिरा नाच फागू गाये।।
छप्पन भोग बनी रंगोली।
पापड़ गोझी खा गइ टोली।।
बच्चे-बूढ़े धमाल मचाये।
इक दूजे को रंग लगाये।।
असत्य को ‘सत्यम‘ ने जीता।
मिलते गले प्यार से मीता।।
घर-घर जाकर दिया बधाई।
आज शुभ घड़ी होली आई।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
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जानकारी के साथ सुन्दर होली.
बधाई.
स्नेही केवल जी
आदरणीय, प्रदीप कुमार सिंह जी, आपको रचना पसन्द आई। आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
भाई केवल प्रसाद जी, आपको बाल-साहित्य में रचनाकर्म करते देखना एक सुखकर अनुभव है. इस विधा की एक अलग ही शैली है.
कबिरा यह घर प्रेम का खाला का घर नाहिं.. . इस उक्ति को सदा मस्तिष्क में रखियेगा.
हृदय से शुभकामनाएँ.
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