For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो फ़कत मुझको वहाँ का पासबाँ समझा किया (ग़ज़ल राज )

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

वो मेरी खामोशियों को हाँ म हाँ समझा किया

मुझको धरती  और खुद को आसमाँ समझा किया

पहना जब तक सादगी और शर्म का मैंने लिबास

ये ज़माना यार  मुझको नातवाँ समझा किया

उस कहानी के सभी किरदार उसको थे अज़ीज़

बस मेरे किरदार को ही रायगाँ समझा किया

जिस्म मेरा रूह मेरी जिस चमन पर थी निसार

वो फ़कत मुझको वहाँ का पासबाँ समझा किया

जिसकी दीवारों में माज़ी सांस लेता था कभी 

यादों से भरपूर घर को वो मकाँ समझा किया

ले गई जिसके गुलों को छीनकर ज़ालिम ख़जाँ

शाख़ के उस दर्द को बस बागबाँ समझा किया

हाय  उसने ही जलाया चिलचिलाती धूप में  

भूल से अबतक जिसे वो सायबाँ समझा किया 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 884

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:13pm

मोहतरम जनाब तस्दीक जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से शुक्रगुजार हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:12pm

आद० विजय निकोर जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का बेहद शुक्रिया ममनून हूँ बहुत बहुत आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:11pm

आद० शेख उस्मानी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बेहद शुक्रगुजार हूँ |आगे से कठिन शब्दों के अर्थ अवश्य लिखा करुँगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:10pm

आद० हर्ष महाजन जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बेहद शुक्रगुजार हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:09pm

आद० लक्ष्मण धामी भैया,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:08pm

आद० अजय तिवारी जी , आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपकी बात सही है उस शेर में मेरा मन्तव्य यही था .

आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:06pm

आद० मोहम्मद आरिफ साहब ,आपको ग़ज़ल अच्छी लगी बहुत बहुत शुक्रिया आपका ,ग़ज़ल में कुछ संशोधन  किये हैं |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:04pm

आद० समर भाई जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए दिल से शुक्रिया आपने जिन महीन बिन्दुओं की तरफ इशारा किया उनके लिए बेहद शुक्रगुजार हूँ तथा उन्ही के मद्देनजर इसमें संशोधन भी कर दिया है खू चकां शब्द का अर्थ खून चूसने वाला लिखा था एक जगह बस उसी  वजह से गलती हो गई अब उस शब्द को बदल दिया है |आपके मार्ग दर्शन के बाद ग़ज़ल में वाकई निखार आया है आपका बारम्बार शुक्रिया भाई जी \


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2018 at 8:00pm

आद० तेजवीर सिंह जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से शुक्रगुजार हूँ |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 19, 2018 at 7:43pm

मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें । शेर 6 में शब्द ख़ज़ा को खिज़ां करलीजिये ।---सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
57 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
58 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
11 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service