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एक बार और

एक बार और जीने की ख्वाहिश हुई
और उमंगे सातवें आसमान छूने को है
एक बार और मन के बीज अंकुरित हुए
और दिल की सरहदें खुलने को है

असंभव कुछ पहले भी नही था
लेकिन इंद्रियां जुड़ नही रही थी
मन दूर दूर दौड़ रहा था
धडकनें धीमे धड़क रही थी
बस कुछ पुरानी ज़मीन
यूँ ही कोड रहा था
पुरानी जड़ों में फसी चींटियों
को देखकर कुछ हो रहा था
हाथ गंदे होकर मिट्टी लेकर
गमले में पौधें लगा रहे अब
आँखें भी एकटक देख रही हैं
होंठ मंद मंद मुस्कुराने को है
और एक लहर किनारे को आने को है
एक बार और बालू मुहाने पे जमने को है
एक बार और जीने की ख्वाहिश हुई
और उमंगे सातवें आसमान छूने को है
एक बार और मन के बीज अंकुरित हुए
और दिल की सरहदें खुलने को है


लौटे हुये चंद पल ही बीते हैं
और आँखे तारों सी टिमटिमा रहे हैं
सुबह की रोशनी का टॉर्च पड़ रहा है
लगता है कि हम और सोच रहे हैं
सोचते ही कुछ याद आया और उठकर
पुराने बक्से से किताब निकालते हैं
तमस फिर बनाया जा सकता है
ओम पूरी को बस एहसास होने को है
चौराहे खड़े मंसूबे दिशा खोजते
नयी तस्वीर आँखों मे डोलने को है
एक बार और जीने की ख्वाहिश हुई
और उमंगे सातवें आसमान छूने को है
एक बार और मन के बीज अंकुरित हुए
और दिल की सरहदें खुलने को है

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2011 at 9:40am
असंभव कुछ पहले भी नही था
लेकिन इंद्रियां जुड़ नही रही थी
मन दूर दूर दौड़ रहा था
धडकनें धीमे धड़क रही थी............

अजय कान्त जी, सुंदर भाव के साथ आपने कविता प्रस्तुत किया है, बधाई आपको | उम्मीद है आपकी और भी कृतियाँ और अन्य साथियों की कृतियों पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणियाँ पढने को मिलती रहेंगी |

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