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निर्जन पगडंडी - एक नयी राह

" तुमसे कुछ भी कहना बेकार है । तुम कभी नहीं सुधर सकते । जाने कितनी बार जेल जा चुके हो , हर बार कहते हो बस यह आखरी चोरी है , फिर वही करने लग जाते हो । तुम्हारे पीछे तुम्हारे परिवार वालों को जो परेशानियाँ होती है , तुमने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया ......।"रमेश अपने दोस्त को कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था पर वह दोस्त तो !!!
"बन्द करो अपनी शिक्षा दिक्षा नहीं सुनना तुमसे कोई भाषण । मेरी मर्ज़ी जो चाहूँ करूँ । बचपन से करते आया हूँ । घर में किसीने नहीं रोका अब यह मेरी बेरी बीवी जब से आई है पीछे पड़ गयी है । और तुम क्यों पीछे पड़ गए हो मेरे ! मैंने तुमसे तो नहीं कहा मेरे परिवार का ख्याल रखो ।" झल्लाकर दोस्त ने जवाब दिया ।
"करो जो करना चाहो पर दोस्त हूँ तुम्हारा क्या करूँ ! चाहता हूँ कि तुम सही रास्ते पर आ जाओ । तभी किसीने आवाज़ लगायी और कहा ," देखो चोर का बेटा भी अब तो चोरी करने लगा है ।अब एक ही घर में दो चोर ।"
रमेश के दोस्त ने बाहर आकर देखा तो उसका 10 वर्ष के बेटे के हाथ में बहुत सारे भरे हुए बटुवे थे । बच्चे के चहरे पर कोई शिकन न देखकर पिता के चहरे पर सलवटे आ गयी और उसने रमेश से कहा ,"तुम ठीक थे दोस्त , अब उस निर्जन पगडंडी पर चलने का वक़्त आ ही गया है ।"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 1:03pm
Thank you sir for approval. Regards

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