शिल्प = भगण X 7 + रगण
ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।ऽ
ऊपर सींकि टँगाय धरी हति,झूलत ती लटकी नित जीत की !!
मॊहन खाइ गयॊ सगरॊ दधि, फॊरि गयॊ मटकी नवनीत की !!
भीतर आइ लखी गति मॊ पर,गाज गिरी टटकी अनरीत की !!
‘राज’ कहैं नहिं दॆंउ उलाहन,भीति हियॆ अटकी कछु प्रीत की !!
"राज बुन्दॆली"
मौलिक एवं अप्रकाशित,,,,,,,
Comment
आदरणीय बुन्देली जी
आपके स्पष्टीकरण से बहुत सी बातों का खुलासा हुआ i मैं आपके प्रयास की सराहना करता हूँ .एक निवेदन है की जब आप हिन्दी छंद में रचना कर रहे है तो लोक भाषाकी छूट वही तक ले जितना हिंदीभाषियों को समझ में आये वरना आप अपनी रचना केवल स्वयं ही समझ पाएंगे .दूसरी बात अनरीति और प्रीतिके प्रयोग से छंद की मात्राओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता तो फिर शुद्ध रूप ही क्यों न लिखें . तद्भव का प्रयोग तो तब करते हैं जब तत्सम से काम नहीं बनता और आप अपने को छोटा मत समझे जैसा आप लिखते है वह अन्य लोगो के लिए दुर्लभ है i मैं आपका सर्वश्रेष्ठ बाहर आये इसलिये आपको कुरेदता हूँ . सादर .
सादर आभार,,,,मेरी टूटी फूटी कोशिश को आपका स्नेह मिला
आदरणीय,,,,,,डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
सादर नमन,,,,,,आपकॆ द्वारा बतायॆ गयॆ सुझावॊं को सिरॊधार्य करतॆ हुये मैनॆ मूल रचना में परिमार्जन कर लिया है,,,,
1- प्रथम पंक्ति में ' ती का प्रयोग थी कॆ अर्थ मॆं किया गया जो बुन्देली लोकभाषा का शब्द है क्योंकि छन्द में लोक भाषाऒं कॆ शब्दॊं का अधिकाधिक प्रयॊग प्रयॊग किया गया है,,,
२-( मोहन खाइ की जगह पर मोहन खाय उचित होगा ).इस पंक्ति में आप्के बताये अनुसार मैंने मूल रचना में बदलाव कर लिया है , साथ ही बहुत जगह (खाय शब्द की जगह खाइ शब्द) का प्रयॊग लोक भाषी साहित्य में देखने को मिला है,,,
३- भीतर आय लखी गति के बाद कामा (,)अनिवार्य है, वह टंकन त्रुटि मॆं भूल कॆ कारण हुआ है क्षमा चाहता हूँ
4-गाज गिरी टटकी अनरीत की -----(टटकी अर्थात ताज़ा-ताज़ा)नुकसान होने के संदर्भ मॆं प्रयोग किया गया है,,,,
5-
4- टटकी अनरीत की ----- का आशय प्रांजल नहीं है
5- अनरीत और प्रीत दोनों गलत है अनरीति और प्रीति होना चाहिए .
अनरीति और प्रीति होना चाहिए बिल्कुल सहमत हूं,,,,लेकिन लोक साहित्य में कई जगह ऎसॆ तद्भव शब्दॊं का प्रयॊग मिलता है जो प्रचलन में पूर्णत: आ चुके हैं और उनका उच्चारण भी इसी रूप में हो रहा है !
आदरणीय मैं कोई बड़ा रचनाकार नहीं हूं,,,बस एक सबसे छॊटा विद्यार्थी हूं,,,सभी के बीच में कुछ सीख रहा हूं,,,पेशे से चिकित्सक होने के नाते बहुत कम समय होता है मेरे पास फ़िर भी जो समय मिलता है कुछ टूटा फूटा करने की कोशिश करते रहता हूं,,,,
सादर नमन आपको,,,,,,,,
आओ बुन्देली जी
1- प्रथम पंक्ति में ' ती का प्रयोग क्यों और 'ती' का अर्थ क्या है ?
२- मोहन खाइ की जगह पर मोहन खाय उचित होगा .
३- भीतर आय लखी गति के बाद कामा (,)अनिवार्य वर्ना अर्थ नहीं बनता
4- टटकी अनरीत की ----- का आशय प्रांजल नहीं है
5- अनरीत और प्रीत दोनों गलत है अनरीति और प्रीति होना चाहिए .
सादर .
सुन्दर छंद
बधाई
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