For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बला-ए-इश्क़ ‘’जान गोरखपुरी’’

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

कुम्हलाए हम तो जैसे सजर से पात झड़ जायें

यु दिल वीरां कि बिन तेरे चमन कोई उजड़ जायें

मिरी आव़ाज में है अब चहक उसके आ जाने की
सितारों आ गले लूँ लगा कि हम तुम अब बिछड़ जायें

कि बरसों बाद मिलके आज छोड़ो शर्म एहतियात
लबों से कह यु दो के अब लबों से आ के लड़ जायें

न मारे मौत ना जींस्त उबारे या ख़ुदा खैराँ
बला-ए-इश्क़ पीछे जिस किसी के हाय पड़ जायें

बना डाला ग़मों के साहिलों ने ‘’जान’’ को दरिया
रस्ता पर्वत दिए जाये अगर हम राह अड़ जायें

‘’मौलिक व् अप्रकाशित’’

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 11:23pm

आ० गिरिराज सर! रचना आपकी नजर में आई सैभाग्य है मेरा!आपकी निर्दिष्ट बातों का पालन जरूर करूँगा!! बहुत बहुत आभार सर!इसी प्रकार अपना आशीर्वाद बनाये रक्खें!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 11:19pm

आ० मिथिलेश सर जी!आपकी बातों को संज्ञान में लिया है! गज़ल की कक्षा का काफी समय से अध्ययन कर रहा हूँ!! मेरी अल्पबुद्धि में, प्रायोगिक कार्य के बिना बातें नही उतरती,इसलिये बह्र में गज़ल लिखने का प्रयास करता रहता हूँ!अभी केवल तिलकराज सर को ही पढ़ पाया हूँ! आ० वीनस केसरी जी को पढना प्रारम्भ कर रहा हूँ!!आपसे सदैव इसी प्रकार मुझ पर अपनी नजर और स्नेहभाव बनाये रखने का प्रार्थना है!! मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार!अभिनन्दन!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 11, 2015 at 10:32am

आदरणीय कृष्णा भाई , गज़ल का बहुत बेहतर प्रयास हुआ है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । आ. मिथिलेश भाई जी से सहमत हूँ , अर्धाक्षर अपने पहले वाले व्यंजन की मात्रा को अगर 1 है तो 2 कर देता है और स्वयम  अगर 1 है तो 1 या 2 है तो 2 रहता है -- इस नियम के अनुसार -- कुम्हलाये - 2122  होगा और रस्ता 22 । ' गज़ल ली बातें ' में मात्रा गिनने और गिराने का पाठ अवश्य पढ लीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 11, 2015 at 9:20am

आदरणीय कृष्ण भाई जी कुम्हलाएँ का वज्न 222 होगा कुम्ह-ला-एँ ... मार्च की व्यस्तता में मंच को समय नहीं दे पा रहा हूँ लेकिन विषय मैंने उठाया था इसलिए अपनी समझ से समाधान कर रहा हूँ बाकी गुनिजन ही बताएँगे  कुछ उदाहरण दे रहा हूँ  -


आँखों में आँसू लहराएँ
होंटों पर बोसे कुम्हलाएँ....... (साक़ी फ़ारुक़ी)

हर वक़्त तसव्वुर कर कर के शरमाए हुए से रहते हैं
कुम्हलाए हुए फूलों की तरह कुम्हलाए हुए से रहते हैं ......(अख़्तर शीरानी)

मगर कहते हैं तारों की हुकूमत रात भर की है
लताफ़त से हैं ख़ाली तेरे कुम्हलाए हुए बोसे........ (अख़्तर शीरानी)

1222 / 1222 / 1222 / 1222

लताफ़त से/ हैं ख़ाली ते / रे कुम्हलाए / हुए बोसे

इसके अलावा उहापोह की स्थिति से निकलने के लिए मंच पर ग़ज़ल की कक्षा में सम्मिलित हो जाये और मात्रा गिराने संबधी नियम जो आदरणीय वीनस भाई जी ने पोस्ट किये है उन्हें अवश्य पढ़े .. सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा. सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 12:16am

आ० मोहन सेठी जी आपका प्रोत्साहन पाकर मन हर्षित हुआ! बहुत बहुत आभार!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 12:14am

अगर कुम् + हलाए हो भी तो भी बजन २१२२ होना चाहिए!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 12:04am

फ़ा य ला तुन  फ़ा य ला तुन  फ़ा य ला तुन  फ़ा य लुन
2 1 2 2         2 1 2 2       2 1 2 2         2 1 2
तुम स मन्‍ दर// हो न पा ये //हम न दरि या// हो स के
को शि शें तो// कीं ब हुत पर// हम न तुम में// खो स के

इसी प्रकार मेरी समझ से तो

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

कु म्ह ला ए// म तो जैसे// स जर से पा//त झड़ जा यें

यु दिल वी रां// कि बिन तेरे// च मन को ई// उ जड़ जा यें

''में हम का 'ह' बेबहर हुआ है"

उच्चारण में 'कु' 'म्ह' अलग आने से वजन १ २ बनेगा शायद!!

मस्तिष्क में बहुत उहापोह की स्थिति हो गयी है,आ० समाधान करें!!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 10, 2015 at 5:29am

वाह क्या खूब कहा है ...

बना डाला ग़मों के साहिलों ने ‘’जान’’ को दरिया 
रस्ता पर्वत दिए जाये अगर हम राह अड़ जायें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 10, 2015 at 5:24am

कुम्हलाएँ - हम / तो जैसे /शजर से पा / त झड़ जायें

  222    - 2    / 222  /   1222     /   1222

 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 9, 2015 at 11:07pm

प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय! हरी प्रकाश दूबे जी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service