For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँझी ( एक कुण्डलिया छंद) ... डॉ० प्राची सिंह

माँझी मंजिल से पृथक डालो नहीं पड़ाव

भँवर भरे मझधार में क्यों उलझाते नाव?

क्यों उलझाते नाव, लहर पथ कहाँ उकेरे

उथल-पुथल संघर्ष, लाख चौरासी फेरे ,

एकल करो विमर्श! बात करनी क्या साँझी?

क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 16, 2015 at 7:13pm

प्रस्तुति के भाव व कथ्य पर अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० संजय कुमार झा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 16, 2015 at 6:51pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

मन मांझी अगर भाव भंवर में जीवन की नाव उलझा दे तो लक्ष्य से भ्रमित हो ही जायेगी न गति...इसी भाव को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है... आपको यह प्रयास सार्थक लगा ..आपकी आभारी हूँ 

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 16, 2015 at 6:49pm

इस कुण्डलिया छंद की सराहना कर उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश जी 

Comment by SANJAY KUMAR JHA on August 7, 2015 at 4:06pm

एक - एक शव्द  माला की तरह है !! अद्भुत !!

एक - एक शव्द ,शव्द बाण की तरह अचूक
चित्त कर रहा चिंतन, होकर इस पर मूक
होकर इस पर मूक , पड़ा हूँ चिंतन में
उठा रहा अनेको प्रश्न, मेरे जेहन में
का से करूँ विचार ? पूछूँ मैं का से रास्ता एक
सब चले हैं अपने डोर, नहीं कोई इतना सस्ता एक


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2015 at 10:24am

आदरणीया प्राची जी , अपने स्व को ,  न भटकने की दी गई समझाइश  बहुत सार्थक और एक आवश्यक समभाइश लगी । उसे पाने के लिये एक पर टिके रहना परम आवश्यक है । इस आध्यात्मिक सोच के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 20, 2015 at 8:41pm

बहुत सुन्दर कुण्डलिया लिखी है प्रिय प्राची बहुत- बहुत बधाई. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 19, 2015 at 7:49pm

आ० हरि प्रकाश दूबे जी 

रचना का कथ्य और कथ्यसान्द्रता आपसे अनुमोदन पा सकी ..यह मेरे लिए आश्वस्तकारी है 

आपका आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 19, 2015 at 7:48pm

आ० डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

प्रस्तुति की अंतर्धारा पर आपकी टिप्पणी अभिव्यक्ति की संप्रेषणीयता के प्रति आश्वस्त करती सी है.. वस्तुतः इसमें एक सजग इकाई द्वारा मनस व बुद्धि के inner dialogue को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है.

अभिव्यक्ति की सराहना और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 19, 2015 at 7:40pm

आदरणीय डॉ० विजय शंकर जी, आ० लक्ष्मण प्रसाद जी, आ० डॉ० आशुतोष जी प्रस्तुत अभिव्यक्ति को स्वीकारने और शुभकामनाएं प्रेषित कर उत्साहवर्धन करने के लिए  हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 19, 2015 at 7:35pm

आदरणीय मिथिलेश जी 

इस प्रस्तुति पर कामायनी जैसी उत्कृष्ट कृति की कुछ पंक्तियों को साँझा कर आपने प्रस्तुत प्रयास को मान दिया है.. तहे दिल से आभारी हूँ 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service