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'' कविता.. कविता सी लगे ''

कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे ,
बहते हुए भावों की ;
एक सरिता सी लगे !

चंचल किशोरी सम जो ;
खिलखिलाए खुलकर ,
बांध ले ह्रदय को ;
नयनों के तीर चलकर ,
ऐसी रचूँ कि कुमकुम सी
मांग में सजे !
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे !

हो मर्म भरी ऐसी ;
जो चीर दे उरों को ,
एक खलबली मचा दे ;
पिघला दे पत्थरों को ,
निर्मल ह्रदय जो कर दे ;
वो सुर लिए सधे !
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे !

तितली का मनचलापन ;
सुरभि लिए कुसुम की ,
आशाओं के गगन में ;
वो चहके पाखियों सी ,
साहित्य के सदन में ;
शहनाई सी बजे !
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे !

(मौलिक व् अप्रकाशित)

शिखा कौशिक 'नूतन'

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Comment

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Comment by somesh kumar on January 10, 2015 at 10:11pm

कविता ,कविता जैसी लगी 

          छंद-भाव में बंधी हुई 

            एक निर्मल स्रोत सी 

              ज्यों  शैल से नदी बही |

सुंदर प्रस्तुति ,बधाई प्रेषित 

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