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प्रभाव-क्षेत्र

प्रभाव-क्षेत्र

अलग होना ही पर्याप्त नहीं है

मुखर होना भी जरूरी है

प्रखर होना और भी जरूरी है

इसी से बनती है पहचान

लोग यूँ ही नहीं सौपते अपनी कमान |

तीर सिर्फ विरोध के चलाना

कामों में अवरोध लाना

लोग लेते हैं तुम्हें जान

पर कर नहीं पाते गुमान |

नेतृत्व एक दायित्तव है

सत्ता एक कड़वा जहर

भाषण एक सामूहिक जलसा

अमलीकरण जेठ-दग्ध दोपहर |

सपने बेचना जानते हो

विज्ञापन के जादूगर हो तो

बाज़ार में हलचल तो कर सकते हो

पर ब्रांड एक विश्वास होता है

जो कमियों को स्वीकारते हुए बढ़ता है|

आँधियों में देर तक जली मशाल

कालजयी कहलाती है

जल बुझी तिलियों को दुनियाँ

सर्वप्रथम बिसराती है

महत्त्व तीली का भी है

महत्त्व मशाल का भी है

पर रोशनी का दीप्तिमान

उसका दायरा बनाता है

जिसका प्रभाव-क्षेत्र जितना बड़ा हो

वो उतना ही प्रकाशमय कहलाता है |

.

सोमेश कुमार

(मौलिक एवं अप्रकाशित ) 

Views: 616

Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on December 23, 2014 at 10:05am

बहुत खूब, सुन्दर प्रस्तुति.

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