For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुरु लघु और लघु गुरु, आपस में है मेल
चूक हुई तों समझिये, बिगड़े सारा खेल

खीरे सा मत होइये , गर्दन काटी जाय
दुनिया से तुम तो गये, स्वाद न उनको आय


इन्द्र देव नाखुश हुए, धरती सूखी जाय
फसल बाजरा तिल करें , दूजा न अब उपाय

जग में संगत बडन की, करो सोच सौ बार
जोड़ी सम होती भली , खाओ कभी न मार


चौबे जी दूबे बने, पीटत अपना माथ
छब्बे बनने थे चले, कुछ नहि आया हाथ


मोबाइल ले हाथ में , बाला करती चैट
गिटपिट गिटपिट बोलतीं , बिल्ली पकडती रैट

आपके अनुमोदन ने , डाली मुझमे जान
सीख रहा हूँ मैं अभी, मोहे नहि अभिमान

मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१२-०८-२०१४

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 8:15pm

आदरणीय प्रदीपजी, आपके साहित्य सद्प्रयास के क्रम में मैं अकिंचन किसी काम आ सका तो यह मेरा सौभाग्य होगा. आप जैसे अनुभव-समृद्ध अग्रजों का सान्निध्य मेरे लिए भी अत्यंत उपयोगी है, इसका ज्ञान है मुझे.

आदरणीय, आपका मेरे जीवन में वैचारिक संप्रेषण हेतु अपनाये गये किसी माध्यम से सदा स्वागत है.

पुनः, मैं आपके सद्प्रयास के क्रम में किसी काम आ सका तो स्वयं को धन्य मानूँगा.

सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 17, 2014 at 8:01pm

परम आदरणीय श्री सौरभ जी 

सादर 

आपके पूर्व निर्देश के अनुपालन में मैने पाठों को सुरक्षित कर लिया है. और उसके अनुसार अभ्यास शुरू करना है. 

खुरचन .. बता रहा है कि जो निम्नस्तरीय दोहे लिखे गए थे, ये अंतिम भाग है. प्रयास होगा कि आपके स्नेह छाया में जब मैं मंच पर आऊ तों कुछ बढ़िया लेकर ही. मार्गदर्शन हमेशा अपेक्षित था और रहेगा . मुझे विश्वास है कि आप मुझे पूर्व की भांति प्रदान करते रहेंगे. 

जय हो मंगल मय हो. विदा . कृष्ण जन्माष्टमी के पावन  पर्व पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभ कामनाये. अति शीघ्र मिलते है. छोटे से अल्प विराम के बाद. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 4:58pm

आदरणीय प्रदीपजी,

आपका संवेदनशील मन जब अपनी रौ में होता है तो इसकी सोच एक अलग ही ऊँचाई पर होती है. आप जिस तरह से अपनी बातों को साझा करते हैं उसका आयाम बहुत बड़ा हुआ करता है. ऐसा कुछ कहने के क्रम में दिखती आपकी उत्तरदायी आकुलता को मैं नमन करता हूँ.  आदरणीय, प्रमाण है, प्रस्तुत हुए दोहों की कहन !.

सम्यक-सम्यक-सम्यक ..!

परन्तु, काश कि आपकी यही आकुलता दोहा छन्द के विधान को एक बार पढ़ लेने में दिखाते. बहुत कुछ स्वयं सध जाता, अलबत्ता, दोहे भी दोहे की तरह दिखते.

पढ़े  लिखे जो उसे क्या कहना.. नहीं पढ़े जो उसे क्या कहना ..

सादर

Comment by Pawan Kumar on August 14, 2014 at 11:16am

जग में संगत बडन की, करो सोच सौ बार 
जोड़ी सम होती भली , खाओ कभी न मार

बहुत सुन्दर और सच्चाई .........सादर बधाई 

Comment by Meena Pathak on August 13, 2014 at 2:26pm

बहुत सुन्दर ...सादर बधाई 

Comment by savitamishra on August 13, 2014 at 10:28am

आपके अनुमोदन ने , डाली मुझमे जान
सीख रहा हूँ मैं अभी, मोहे नहि अभिमान.......बहुत खुबसुरत

अनुमोदन सच में जान ही डालता है जैसे जब तक ना हो सांस अटकी रहती हैं .....आदरणीय चाचाजी सादर नमस्ते

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का यह लिहाज इसलिए पसंद नहीं आया कि यह रचना आपकी प्रिया विधा…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी कुण्डलिया छंद की विषयवस्तु रोचक ही नहीं, व्यापक भी है. यह आयुबोध अक्सर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service