इक ऐसा भी घर बनवाना!
जिसमे रह ले एक ज़माना !!
खुद से खुद की बातें करना !
जब खुद के ही हिस्से आना !!
वो मरा है तू भी मरेगा !
लगा रहेगा आना जाना !!
कुछ ऐसा भी कर ले पगले !
जो बन जाए एक फ़साना !!
खुद से ही भागेगा कब तक !!
खुद से चलता नहीं बहाना !!
भूल गया हो गर वो मुझको !
उसको मेरी याद दिलाना !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय आशीष नैथानी 'सलिल' जी ,,,,,,,,,, सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीया सविता जी ,,,,,,,,,, सादर
उत्साह वर्धन अनुमोदन व् अमूल्य सुझाव हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,,,,,,,,,, सादर प्रणाम
खुद से ही भागेगा कब तक !!
खुद से चलता नहीं बहाना !! बहुत सुन्दर ! वाह !!
अति सुन्दर
इक ऐसा भी घर बनवाना!
जिसमे रह ले एक ज़माना !! ... मन को संतुष्ट करता हुआ मतला हुआ है, वाह !
खुद से खुद की बातें करना !
जब खुद के ही हिस्से आना !!..... इस अत्यंत प्रभावी तथा चकित करते शेर के लिए मैं बार-बार दाद कह रहा हूँ.
वो मरा है तू भी मरेगा !
लगा रहेगा आना जाना !!... .. . कथ्य सामान्य है. शेर का उला देख लीजियेगा. कुछ और प्रवहमान होना चाहता है.
कुछ ऐसा भी कर ले पगले !
जो बन जाए एक फ़साना !!..........हम्म.. . मगर सिर्फ़ ’फ़साना’ बनने के पीछे मत पड़ना.. :-))
खुद से ही भागेगा कब तक !!
खुद से चलता नहीं बहाना !!........ बहुत खूब !
भूल गया हो गर वो मुझको !
उसको मेरी याद दिलाना !!.............. सही बात ..
भाई रामशिरोमणी, इस बह्र की खासियत ही है कि इसका प्रवाह सरस होता है. यदि वाचन में कहीं अटकाव हुआ तो प्रभाव कम पड़ता है. उस हिसाब से कुछेक मिसरे तनिक और प्रयास मांगते हैं. लेकिन यह अवश्य है कि आपकी मेहनत आश्वस्त करती है.
दाद कुबूल करें.
हार्दिक आभार आदरणीया मीना दी............... सादर
अति सुन्दर
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