For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समय हमें क्या दिखा रहा है/गज़ल/कल्पना रामानी

1212212122

समय हमें क्या दिखा रहा है।

कहाँ ज़माना ये जा रहा है।

 

कोई बनाता है घर तो कोई,

बने हुए को ढहा रहा है।

 

बुझाए लाखों के दीप जिसने,

वो रोशनी में नहा रहा है।

 

गुलों को माली ही बेदखल कर,

चमन में काँटे उगा रहा है।

 

कुचलता आया जहाँ उसी को,

जो फूल खुशबू लुटा रहा है।

 

जो बीज बोकर उगाता रोटी,

वो भूख से बिलबिला रहा है।

 

हो बाढ़ या सूखा दीन का तो,

सदा ही खाली घड़ा रहा है।

 

खफा हैं क्यों काफिये बहर से,

गज़ल को ये गम सता रहा है।

 

ये “कल्पना” रब का न्याय कैसा,

दुखों का ही दिल दुखा रहा है। 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on April 6, 2014 at 12:48pm

कल्पना जी आपकी गज़ल की एक एक पंक्ति आज के समाज का सही चित्र खींचा है.आपके अनुभव को साधुवाद.

Comment by बृजेश नीरज on April 6, 2014 at 7:56am

सच्चाई से भरे अशआर! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 6, 2014 at 12:29am

आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीया कल्पना जी,  मेरे कहे को आपने इतना मान दिया यह आपका बड़प्पन है .

सादर!

Comment by कल्पना रामानी on April 5, 2014 at 10:33pm

आदरणीया प्राची जी, आपको गजल पसंद आई, मन को सुकून मिला। मन से धन्यवाद आपका

Comment by कल्पना रामानी on April 5, 2014 at 10:31pm

प्रिय गीतिका, तुम्हारी रचना पर उपस्थिति ही सुखकर प्रतीत होती है, बहुत बहुत धन्यवाद /सप्रेम

Comment by कल्पना रामानी on April 5, 2014 at 10:30pm

आदरणीय अखिलेश जी, प्रोत्साहित करने के लिए सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on April 5, 2014 at 10:28pm

आदरणीय जितेंद्र जी, आपने समय देकर बारीकी से गजल को पढ़ा इससे बहुत खुशी हुई। आपके बताए शब्द पर अब मेरी भी सहमति बन रही है।  लिखते समय यह शब्द भी सोचा था, पर सटीक क्या रहेगा यह तय नहीं कर पाई। आपने सुझाव देकर मेरी उलझन दूर कर दी। आपका मन से आभार।

Comment by कल्पना रामानी on April 5, 2014 at 10:24pm

आदरणीय बैद्यनाथ जी, प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2014 at 10:09pm

सभी अशआर बहुत सादगी और सच्चाई से कहे गए हैं ..बहुत पसंद आये 

बहुत बहुत बधाई आदरणीया कल्पना जी 

Comment by वेदिका on April 5, 2014 at 4:53pm
कोई बनाता है घर तो कोई,
बने हुए को ढहा रहा है।
बहुत सादगी से किन्तु उतनी ही असरदार कहन हुयी है।
कुचलता आया जहाँ उसी को,
जो फूल खुशबू लुटा रहा है। ........ बहुत खूब
ढेर सारी शुभकामनायें आ0 कल्पना दी!
सादर गीतिका वेदिका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service