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कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

बागी ठोके ताल यूँ, दल को देने चोट

टिकिट मिले दागी खड़े, किसको डाले वोट

किसको डाले वोट, नहीं कुछ समझ में आता

खूब जताए प्यार, निकाले  रिश्ता  नाता

कह लक्ष्मण कविराय, देख अब जनता जागी

दागी की हो हार, भले ही जीते बागी |

(२)

योगी भोगी तो नहीं, उसके मन में टीस,

सुनो अरज माँ शारदे,दो अपना आशीष 

दो आपना आशीष,यही है बस अभिलाषा 

भारत रहे अखंड, रहे न एक भी प्यासा  

कह लक्ष्मण कविराय, रहे सब यहाँ निरोगी

करो सभी का मान, मिले जब रमते योगी |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 4, 2014 at 10:08am

छंद पर उत्साहित करती आपकी प्रतिक्रया पाकर बहुत संतोष मिला | आपका हार्दिक आभार आद. श्री सौरभ जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 4:31pm
वाह वाह ! बहुत सार्थक और स्पष्ट छंद रचना, आदणीय लक्ष्मण प्रसादजी.
अपने उद्येश्य में सफल इन कुण्डलिया छंदों के लिए बहुत-बहुत बधाई.


यह अवश्य है कुछ सुधीजन स तथा ष की तुकान्तता पर प्रश्न करेंगे. फिर भी आपका यह प्रयास समीचीन हुआ है.
सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2014 at 3:58pm

हार्दिक आभार मित्र श्री विशाल चर्चित जी 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on March 31, 2014 at 3:56pm

वाह - वाह..... सुन्दर कुंडलिया रचा सर जी !!!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2014 at 12:08pm

छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by Shyam Narain Verma on March 28, 2014 at 5:11pm
बहुत सुंदर भावपूर्ण कुण्डलिया है, आपको हार्दिक बधाई ...........................

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