अल्प विराम – पूर्ण विराम
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वो मै होऊँ या आप
छोटा मोटा विद्यार्थी
सबके अंदर जीता है ,
आवश्यक रूप से
और वो जानता भी है ,
जीते रहने की अहमियत
जीना भी चाहता है
पूर्णता तक,
या मौत तक ।
सीखने के क्रम में पूर्ण विराम नहीं होता
सब अल्प विराम ही होते हैं
क्योंकि ,
पूर्ण ज्ञान तो होता है
केवल ईश्वर में
या उस पूर्ण ज्ञानी को जान लेने में ।
वही भेजता है , देता है , लगाता है
पूर्ण हो जाने पर ,
पूर्ण विराम ।
एक बार , बस एक बार ,
बाक़ी सब अल्प विराम होते हैं ।
चंद अल्प विरामों को जोड़ कर
ज़िन्दा विद्यार्थी की गर्दन मरोड़ कर
बलात लगाये गये पूर्ण विराम
भ्रम तो देते हैं , वो भी
खुद को अधिक , दूसरों को कम
पूर्ण विराम का ,
मगर होते नही ॥
मर रहे विद्यार्थी को जीने दें भाई ॥
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सचिन भ्हाई रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
सादर प्रणाम आदरणीय गिरिराज जी.... बेहतरीन रचना बहुत ही गहरे सन्देश के साथ प्रेषित की आपने हार्दिक बधाई आपको !
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