For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दायरा...

       सोच का,

       मन की उड़ान के

       परिचित आसमान का,

       अंतर्भावनाओं के विस्तार का,

       अनुभूतियों के सुदूर क्षितिज का,

समयानुरूप

स्वतः विस्तारित हो, तो कैसे ?

 

तन मन बुद्धि अहंकार की

लोचदार चारदीवारी मैं कैद...

संकुचन के बल-प्रतिबल

से संघर्षरत,

होता क्लिष्ट से क्लिष्टतर

जटिल से दुर्भेद फिर अभेद

कर्कश कट्टर असह्य  

 

आखिर

कौन सचेत, पहचानता है ये दायरा ?

       पहले अपना 

       फिर दूसरों का..

कौन निर्भय, तोड़ता है ये दायरा ?

       पहले अपना 

       फिर दूसरों का..

कौन उन्मुक्त, करता है आज़ाद ?

       अंतर बद्ध पंछी को

       पिंजर से-

       असीम आकाश में

       उड़ जाने के लिए...

 

क्या प्रियतम तुम?

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sarita Bhatia on February 12, 2014 at 4:27pm

दायरा यह सोच का मन का 

अहा 

क्या बात कही प्राची जी 

Comment by shashi purwar on February 11, 2014 at 10:27pm

सुन्दर रचना है प्राची जी , दायरा यह सोच का मन का। …। यही निर्भर करता  है व्यक्तिव की रूप रेखा ……… सुन्दर अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 7:45pm

आदरणीया दीदीजी, आपके विभिन्न अभिनव प्रयोग शिल्प एवं भाव दोनो के दृष्टिकोण से सदैव अनुकरणीय रहा है । प्रस्तुत रचना इसी संबंल की एक कडी है । आपके पैनी नजर समाज के संकीर्ण मानसीकता पर एक वाजिब प्रश्न चिन्ह खडा करता है । इस प्रस्तुति पर नमन सह बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 11, 2014 at 7:29pm

आदरणीया डॉ प्राची जी बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2014 at 2:42pm

सुंदर रचना आदरनीय प्राची दीदी. बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
17 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
23 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service