For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नाव है, पतवार नहीं

भाव है, पर शब्द नहीं

शब्द साधे पर,

अभिव्यक्ति का

सलीका नहीं |

छंद का ज्ञान कर,

शिल्प को साध कर

कविता गढ़ दी

बार बार पढ़कर

पाया,

कविता में वह-

मधुर तान नहीं |

तब, कविता लिखा

कागद फाड़कर,

डालता रहा-

कूड़ेदान में,

कलम हाथ में पकडे

पकड़कर माथा,

गडा दी आँखे

घूरते कागजो के-

कूड़ेदान में |

फिर आहिस्ता से

सिर उठाया-

आसमान की बुलंदी देख

होंसला बढाया,

कलम को कागज पर

नाव की तरह चलाया |

शाम ढले

कलम को घिसते

खेत होती श्याही

थकती उँगलियों देख

जैसे ही हाथ हटाया-

एक विद्वजन कवि

का सामने आया |

उसका चेहरा पढ़ा,

चेहरे को पढ़कर

कर में, कलम थामकर

लिखने का मन

फिर बनाया,

पीछे से किसी ने

पीठ थपथपाई

बोले- डटें रहो,

प्रयास आपका

रंग ला रहा है |

(मौलिक व् अप्रकाशित) 

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 31, 2013 at 9:05am

आर्दिक आभार आपका आ. अन्नपूर्णा बाजपाई जी | सादर

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:50pm

अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया , आ0 लड़ी वाला जी बधाई आपको । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 9:23am

रचना सुन्दर और सार्थक बता कर आपने रचना का मान बढ़ा दिया | मेरा प्रयास सार्थक हो गया | आपका हार्दिक आभार श्री सुशिल जोशी जी | सादर  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 9:20am

रचना पसंद करने के लिए आपका आभार श्री राम शिरोमणि पाठक जी एवं श्री रमेश कुमार चौहान जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 9:19am

आपको रचना रोचक लगी, मेरा प्रयास सार्थक हुआ | आपका हार्दिक आभार भाई श्री विशाल चर्चित जी  

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 9:32pm

बहुत सुंदर रचना है आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.... किस कदर मन के भाव कागज़ पर उतरकर एक सुंदर रचना में परिवर्तित होते हैं, यह बखूबी बताया आपने....और सचमुच रचना वही अच्छी होती है जो अपने आप दिल से निकले..... केवल छंदों का ज्ञान होने से ही रचना लिख तो सकते हैं लेकिन उसमें वह मिठास नहीं लाई जा सकती जो दिल से स्वत: निकले शब्दों में होती है.... इस सार्थक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई.....

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 29, 2013 at 11:47am

बोले- डटें रहो,

प्रयास आपका

रंग ला रहा है |............................ बधाई आदरणीय बधाई

Comment by ram shiromani pathak on October 29, 2013 at 11:25am

आदरणीय लक्ष्मण जी  , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति  // बहुत बहुत बधाई///सादर 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 28, 2013 at 9:47pm

आपने एक कवि द्वारा रचना लिखे जाने तक की तमाम यात्रा को अत्यन्त विस्तार एवं रोचक ढंग से बताया.....हार्दिक बधाई !!!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 28, 2013 at 7:24pm

मन के भाव अगर करीने से बांध जाए तो कविता स्वतः बन जाती है, और तब कोई विद्वजन पीठ थपथपाकर 

संबल प्रदान करता है तो आगे का मार्ग प्रशस्त हो जाता है | यही आपने भी किया है भाई श्री राजेश म्रदु जी |

आपका हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service