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नया बने सम्बन्ध, पकाओ धीमा धीमा-

सीमांकन दूजा करे, मर्यादा सिखलाय |
पहला परवश होय तब, हृदय देह अकुलाय |


हृदय देह अकुलाय, लगें रिश्ते बेमानी |
रविकर पानीदार, उतर जाता पर पानी |


यह परिणय सम्बन्ध, पके नित धीमा धीमा |
करिए स्वत: प्रबन्ध, अन्य क्यूँ पारे सीमा -

मौलिक / अप्रकाशित
(दुर्गा-पूजा / विजयादशमी की मंगल-कामनाएं )

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Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 3:47am

कुंडलिया में कर रहे, रिश्तों का आह्वान।

सुंदर भाव प्रवाह में, सफल हुए श्रीमान।।.... बहुत बहुत बधाई हो आदरणीय रविकर जी...

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:28pm

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 4:38pm

aadarneey gurudev ..bahut sunder kundaliyan ..aapke saadar badhaaaayee ke sath 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 12, 2013 at 10:01pm

कुण्डलियाँ तो एक है, कहे कोई भई वाह!
कोई आधा समझ के , क्यों भरते है आह!
कृपया अन्यथा न लें! औरों की प्रतिक्रिया देख, बस यूं ही निकल गया!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2013 at 8:32pm

//करिए स्वत: प्रबन्ध, अन्य क्यूँ पारे सीमा -//.........क्या कहने? वाह....बहुत सुन्दर कुण्डलियां।    हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। आदरणीय रविकर भार्इजी,  सादर,

Comment by Abhinav Arun on October 11, 2013 at 9:52am

बहुत सुन्दर सशक्त आ. श्री रविकर जी !

Comment by aman kumar on October 11, 2013 at 9:50am

नया बने सम्बन्ध, पकाओ धीमा धीमा |

रविकर जी सन्देश किस समाज के लिए है ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 11, 2013 at 7:51am

आदरणीय रविकर जी , रिश्तों को मर्यादित रखने का बहुत अच्छा रास्ता सुझाया है आपने !!! लाजवाब कुंडलिया के लिये बधाई !!

नया बने सम्बन्ध, पकाओ धीमा धीमा |
करिए स्वत: प्रबन्ध, अन्य क्यूँ पारे सीमा ?? --------वाह भाई वा !!

Comment by vandana on October 11, 2013 at 7:19am

नया बने सम्बन्ध, पकाओ धीमा धीमा |
करिए स्वत: प्रबन्ध, अन्य क्यूँ पारे सीमा ??

वाह सर बहुत सुन्दर सन्देश .....बहुत बहुत बधाई 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 10, 2013 at 8:07pm
आदरणीय रविकर जी! सुन्दर कुंडलिया छंद लेकिन इसका संदेश मुझे अस्पष्ट लग रहा है।
सादर।

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