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किसी दिन - (रवि प्रकाश)

किसी दिन अचानक
रौँदे गए सपने
बवाल तो करेंगे।
जिन्हें हाशिए पर
धकेला है ज़बरन
सवाल तो करेंगे।

धमनी में जम कर
हुआ है जो पत्थर
बहेगा धमाके से।
सड़ी अर्गला से
उकताई खिड़कियाँ
खुलेंगी धड़ाके से।

जिस्म की रेत से
हज़ार बाँह वाले
निकलेंगे आबशार।
भरेंगे किनारे
मन की मरुभूमि पे
झूलेंगे देवदार।

कसकेगी कविता
जब पीड़ा व पीड़ित
रहेंगे एकाकार।
रचेगा नवगीत
अनुष्टुप भी अभीत
छाती का व्यथा-भार।

अस्फुट ध्वनियों में
किसी दिन अनायास
विस्फोट हो रहेगा।
घटाटोप जो है
नयनों में अंततः
बड़वाग्नि सा दहेगा।

घिसी वर्णमाला
चुक जाएगी जभी
नए भाव उमड़ेंगे।
होगा आलोड़न
और अतिचारी के
जमे पाँव उखड़ेंगे॥

मौलिक व अप्रकाशित।

Views: 644

Comment

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Comment by Ravi Prakash on September 29, 2013 at 2:30pm
सराहना के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद!!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 28, 2013 at 1:53am

भाई रविप्रकाशजी, आपकी कविता ने एकदम से ध्यान खींचा है.  बहुत-बहुत बधाई आपको इस सुन्दर प्रयास पर..
आपसे और सुनने की इच्छा है..
शुभेच्छाएँ

Comment by Ravi Prakash on September 25, 2013 at 8:34pm
आ॰ नीरज जी, हार्दिक धन्यवाद।
Comment by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 7:51pm

वाह! बहुत अच्छी रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Ravi Prakash on September 25, 2013 at 3:02pm
धन्यवाद आ. विजयश्री जी।आपकी सराहना से उत्साह मिला॥
Comment by vijayashree on September 25, 2013 at 1:43pm

किसी दिन अचानक
रौँदे गए सपने
बवाल तो करेंगे।
जिन्हें हाशिए पर
धकेला है ज़बरन
सवाल तो करेंगे।

बहुत खूब रवि प्रकाश जी 

Comment by Ravi Prakash on September 25, 2013 at 6:29am
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद सारथी जी।
Comment by Saarthi Baidyanath on September 24, 2013 at 10:54pm

शुरुआत बेहद कमाल का हुआ है ....लाजवाब साहब 

किसी दिन अचानक
रौँदे गए सपने
बवाल तो करेंगे।
जिन्हें हाशिए पर
धकेला है ज़बरन
सवाल तो करेंगे।.....क्या शिल्प है ...नमन सहित :)

Comment by Ravi Prakash on September 24, 2013 at 10:16pm
धन्यवाद अनुराग जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 24, 2013 at 5:41pm

ना रोको इस लावे को बह जाने दो , नए युग की शुरुआत का आगाज यही है ! बहुत बहुत बधाई आपको 

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